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________________ तत्त्वार्थविषयक मूल साहित्य : २२७ तत्त्वार्थसूत्रकर्तृत्वप्रकटीकृतसन्मनाः । उमास्वातिपदाचार्यों मिथ्यात्वतिमिरांशुमान् ॥५॥ -जै० सि० भा० १, कि० ४, पृ० ५१ । उक्त शिलालेखोंसे प्रकट होता है कि कुन्दकुन्दाचार्यके पश्चात् उनके अन्वय में उमास्वाति नामके आचार्य हुए और उन्होंने तत्त्वार्थसूत्रकी' रचना की । किन्तु दिगम्बर जैन परम्परामें तत्त्वार्थसूत्रके रचयिता उमास्वामी नामसे ही प्रसिद्ध हैं। मूल तत्त्वार्थसत्रकी जो लिखित प्रतियां पाई जाती हैं उनके अन्तमें प्रायः यह श्लोक पाया जाता है तत्त्वार्थसूत्रकर्तारं गृद्धपिच्छोपलक्षितम् । वन्दे गणीन्द्रसंजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ।। इसमें तत्त्वार्थसूत्रके कर्ताका नाम उमास्वामी बतलाया है और उन्हें गृद्धपिच्छसे युक्त कहा है। अर्थात् वह गृद्ध के पंखोंकी पीछी रखते थे। इसीसे श्रवणवेलगोलाके शिलालेखोंमें उन्हें गृपिच्छाचार्य कहा है। विक्रमकी सोलहवीं शताब्दीके टीकाकार श्रुतसागरने अपनी तत्त्वार्थवृत्ति में भी तत्त्वार्थ सूत्रके कर्ताका नाम उमास्वामी लिखा है । तथा औदार्य चिन्तामणि नामके अपने व्याकरण ग्रन्थमें 'श्रीमानुमाप्रभुरनन्तर पूज्यपादः' लिखकर 'उमा' के साथ 'प्रभु' शब्द लगाकर उमास्वामी नामको और भी अधिक स्पष्ट क दिया है। __ श्री मान् पं० जुगल किशोरजी मुख्तारने यह संभावना व्यक्त की है रिक १. तत्त्वार्थसूत्रके रचयिता के विषयमें लिखे गये साहित्यका विवरण इस प्रकार है-पं० सुखलाल जी द्वारा लिखित तत्त्वार्थसूत्रकी प्रस्तावना, पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार लिखित समन्त भद्र नामक निबंधके अन्तर्गत उमास्वाति विषयक काल विचार, भा० ज्ञा० पीठसे प्रकाशित सर्वार्थ सिद्धिकी पं० फूलचन्द्रजी लिखित प्रस्तावना । पं० कैलाशचन्द्र लिखित तत्त्वार्थसूत्रकी प्रस्तावना। अनेकान्त वर्ष १, में 'तत्त्वार्थसूत्रके कर्ता कुन्दकुन्द' पृ०१९८, 'उमास्वाति या उमास्वामी' पृ० २६९, तत्त्वार्थसूत्र की उत्पत्ति पृ० २७० । अने०, वर्ष ३, में-'तत्त्वार्थाधिगम भाष्य' पृ० ३०४; ६२३, ३०७. १२१ । अनेकान्त वर्ष ४, में-पृ० १७, २४९, २८३ । अने, वर्ष ५ में-तत्त्वार्थसूत्रका अन्तःपरीक्षण पृ० ५१ । अने०, वर्ष ९, स्थोपज्ञ भाष्य, पृ० ६४१, उमास्वातिका सभाष्य तत्त्वार्थ जै० सा० इ० पृ० ५२१-५४७। तत्त्वार्थसूत्रकी परम्परा-जै० सि० भा०, वर्ष १२ कि० १-२ ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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