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२२६ : जैनसाहित्यका इतिहास भ्रष्ट साधु कितना ही कठोर तपश्चरण करें, करोड़ों वर्ष बीतनेपर भी उन्हें बोधिलाभ नहीं हो सकता ॥४॥
असंयमीको नमस्कार नहीं करना चाहिये । असंयमी नग्न भी हो तो भी नमस्कार नहीं करना चाहिये ॥२६॥ न तो शरीर बन्दनीय है, न कुल और न जाति । गुण ही वन्दनीय है। जो गुणहीन है वह श्रमण हो अथवा श्रावक हो, वन्दनीय नहीं है ॥२७॥ इत्यादि कथन किया है । ___ कुन्दकुन्दाचार्यके अन्य पाहुड़ोंमें तथा बारह अणुवेक्खा, दशभक्ति वगैरहमें तत्त्वसे अधिक, आचारका प्रतिपादन है। अतः उनके सम्बन्धमें चरणानुयोग वषयक माहित्यमें प्रकाश डाला जायगा । आचार्य गृद्धपिच्छ और उनका तत्त्वार्थ सूत्र
श्रवणवेलगोलाके शिलालेख नं० ४०, ४२, ४३, ४७ और ५० में आचार्य कुिन्दकुन्दके स्मरणके पश्चात् नीचे लिखा श्लोक पाया जाता है
अभूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसावाचार्यशब्दोत्तरगृद्धपिच्छः ।
तदन्वये तत्सदृशोऽस्ति नान्यस्तात्कालिकाशेषपदार्थवेदी ॥७॥ अर्थात् आचार्य कुन्दकुन्द के अन्वयमें गृपिच्छाचार्य उमास्वाति मुनीश्वर हुए । तत्कालीन अशेष पदार्थोंका जानकार उनके समान दूसरा नहीं है।
श्रवणवेलगोलाके ही शिलालेख नं० १०५ और १०८ में इन्ही उमास्वाति को तत्त्वार्थ सूत्रका कर्ता बतलाया है । यथा
श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमार्गाचरणोद्यतानां पाथेयमध्यं भवति प्रजानाम् ॥१५॥
-शि० नं० १०५ । अभूदुमास्वातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी । सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थजातं मुनिपुंगवेन ।।११॥
-शि० नं० १०८ । 'ऐपिग्राफ़िया कर्णाटिका' की ८वीं जिल्दमें प्रकाशित नगर ताल्लुकेके ४६वें शिलालेखमें भी उमास्वातिको तत्त्वार्थसूत्रका कर्ता तथा श्रुतकेवलिदेशीय बतलाया है यथा
'त वार्थसूत्रकर्तारमुमास्वातिमुनीश्वरम् ।
श्रुतकेवलिदेशोयं वन्देऽहं गुणमन्दिरम् ।" शुभचन्द्राचार्यने अपनी गुर्वावलीमें भी कुन्दकुन्दके पश्चात् उमास्वातिका स्मरण करते हुए उन्हें तत्त्वार्थ सूत्रका कर्ता बतलाया है । यथा