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२१२ : जैनसाहित्यका इतिहास । सत्स्वरूप अनन्यमय और 'अणुमहान्त' बतलाया है। अमृतचन्द्रने 'अणुमहान्त' का अर्थ किया है 'प्रदेशप्रचयात्मकाः' अर्थात् ये पांचों द्रव्य बहुप्रदेशी हैं। इसीलिये उन्हें अस्तिकाय कहते हैं। गाथा ५ में उन अस्तिकायोंको विविध गुणों
और पर्यायोंके साथ अस्तिस्वभाव बतलाया है और लिखा है कि यह त्रैलोक्य उन्हींसे बना हुआ है। गा० ६ में उन अस्तिकायोंको नित्य और परिणमन शील बतलाकर द्रव्य बतलाया है। अस्तिकाय तो पाँचही है किन्तु द्रव्य छ हैं, उनमें काल भी सम्मिलित है । गाथा ७ में बतलाया है कि ये छहों द्रव्य इस लोकमें परस्परमें हिले मिले रहते हुए भी, और एक दूसरेको परस्परमें जगह देते हुए भी अपने-अपने स्वभावको नहीं छोड़ते हैं ।
इस तरह सात गाथाओंके द्वारा जैन सिद्धान्तके अनुसार इस विश्वके मूलभूत तत्त्वोंके नाम, उनकी सामान्य संज्ञा द्रव्य, और उनके अस्तित्व, स्वभाव तथा अवस्थितिको संक्षेपमें बतलाकर कुन्दकुन्दाचार्यने आगे सत्ता, द्रव्य, गुण और पर्यायका कथन किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे समयसारका प्रतिपादन करते हुए उनके सामने उपनिषदोंमें प्रतिपादित अद्वैत सिद्धान्त तथा सांख्य दर्शनकी प्रक्रिया थी वैसे ही पञ्चास्तिकायका प्रतिपादत करते समय वैशेषिक दर्शनकी प्रक्रिया उनके सामने थी। वैशेषिक दर्शनमें सत्सामान्य सत्ताको द्रव्यसे जुदा माना गया है । गाथा ८ में सत्ताका स्वरूप बतलाकर गा० ९ में उन्होंने द्रव्यको सत्तासे अनन्यभूत बतलाया है । गा० १० में द्रव्यके तीन लक्षण बतलाये है-जो सत् है वह द्रव्य है, जो उत्पाद व्यय ध्रौव्यसे संयुक्त है वह द्रव्य है और जो गुण और पर्यायोंका आश्रय है वह द्रव्य है । गा० ११ में बतलाया है कि द्रव्यकी न तो उत्पत्ति होती है और न विनाश । किन्तु पर्यायोंका उत्पाद और विनाश होता है । और पर्याय द्रव्यसे अनन्यभूत हैं क्योंकि न पर्यायके बिना द्रव्य होता है और न द्रव्यके बिना पर्याय होती हैं ।। १२ ॥ इसी तरह द्रव्यके बिना गुण नहीं होते और गुणोंके विना द्रव्य नहीं होता। अतः द्रव्य गुण पर्याय ये सब अभिन्न है ॥ १३ ॥
गाथा १४ में सप्तभंगीके सात भंगोंके केवल नाम गिनाये हैं और उनके प्रकाशमें गा० १५ से २१ तक सात गाथाओंके द्वारा द्रव्यके भाव, अभाव, भावाभाव और अभावका निरूपण द्रव्य दृष्टि और पर्याय दृष्टिसे किया है ।
गीता (२।१६) में कहा है-'नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः' । कुन्दकुन्द भी कहते हैं-'भावस्स पत्थि णासो पत्थि अभावस्स चेव उप्पादो' ॥ १५ ॥ किन्तु यह बात द्रव्य दृष्टिसे है । सदुच्छेद और असदुत्पादके बिना भी गुणों और पर्यायोंमें विनाश और उत्पाद होता है। जैसे एक देही मनुष्य पर्याय