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अध्यात्म-विषयक टीका-साहित्य : २०५ आदि सभी विषयोंपर अपनी लेखनी चलायी है । इनकी प्रतिभा अपूर्व थी । इनके बहुतसे ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं।
जैनधर्मप्रसारक सभा भाव नगरकी ओरसे यशोविजय-ग्रन्थमाला नामके संग्रह ग्रन्थमें दस ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। उनके नाम है-अध्यात्मसार, देव-धर्मपरीक्षा, अध्यात्मोपनिषद्, आध्यात्मिकमत-खण्डन सटीक, यतिलक्षण समुच्चय, नयरहस्य, नयप्रदीप, नयोपदेश, जनतर्क-परिभाषा और ज्ञानबिन्दु। अन्तके नय रहस्य आदि प्रकरण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
इनमेंसे नयोपदेशमें उपाध्यायजीने दिगम्बरोंके निश्चयनयको जगत्का उसी प्रकार हितकारी नहीं बतलाया जैसे विषकी रसायन सबके लिए हितकर नहीं होती । जैसे चक्रवर्तीका भोजन थोड़ोंका उपकारक और बहुतोंका अपकारक होता है वैसे ही निश्चयनय थोड़ोंका उपकारी और बहुतोंका अपकारी है । निश्चयनयमें न कोई शिष्य है और न कोई गुरु, न क्रिया और न क्रियाका फल है, और न कोई दाता है और न कोई भोक्ता। ऐसे निश्चयनयका उपदेश पुरुषोंके मिथ्यात्वका ही कारण होता है । ___ इसतरह उपाध्यायजीने दिगम्बरोंके निश्चयनयको उन्हींके योग्य बतलाया है जो उसे पचा सकनेकी शक्ति रखते हों।
किन्तु श्री उपाध्याय यशोविजयजीने जहाँ एक ओर दिगम्बरोंके निश्चयनयकी भर्त्सना की वहीं दूसरी ओर भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यके समयसारको अपने अध्यात्मविषयक प्रकरणोंमें आत्मसात् करनेकी भी चेष्टा की। उनके अध्यात्मसार और अध्यात्मोपनिषद् नामक ग्रन्थोंमें समयसारकी अनेक गाथाओंका संस्कृतमें रूपान्तर मिलता है। १. 'शुद्धा ह्य तेषु सूक्ष्मार्था अशुद्धाः स्थूलगोचराः ।
फलतः शुद्धतां त्वाहुर्व्यवहारे न निश्चये ॥७४॥ क्रियाक्रियाफलौचित्यं गुरुः शिष्यश्च यत्र न । देशना निश्चयस्यास्य पुंसां मिथ्यात्वकारणम् ॥७५।। परिणामे नयाः सूक्ष्मा हिता नापरिणामके । न वाति परिणामे च चक्रिणो भोजनं यथा ॥७६।। आमे घटे यथा न्यस्तं जलं स्वघटनाशकृत् । तथापरिणते शिष्ये रहस्यं नयगोचरम् ।।७।। तेनादौ निश्चयोद्ग्राहो नग्नानामपहस्तितः । रसायनीकृतविषप्रायोऽसौ न जगद्धितः ॥७९॥
-नयोपदेश