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अध्यात्म-विषयक टीका-साहित्य : १९५ प्राकृत ग्रन्थोंके कैटलागमें कारंजाके बलत्कारगणके भण्डारमें प्रभाचन्द्रकृत समयसार टीकाका नाम दिया हुआ है। प्रवचनसारकी अंग्रेजी प्रस्तावनामें डॉ० उपाध्येने प्रवचनसारको प्रभाचन्द्र कृत प्रवचनसरोज भास्कर नामकी संस्कृत टीकाका उल्लेख किया है और लिखा है कि प्रवचनसारके इस संस्करणके सम्पादनमें उसका उपयोग किया है। उन्होंने यह भी संभावना की है कि प्रभाचन्द्रने कुन्दकुन्दके शेष दोनों ग्रन्थों पर भी अर्थात् समय प्राभृत और पञ्चास्तिकाय पर भी टीकाएं रची होगी।
प्रवचनसरोज भास्करके कर्ता प्रभाचन्द्रका समय निर्णीत करते हुए डॉ० उपाध्येने' श्रुत मुनिकी प्राकृत भावत्रिभंगीकी प्रशस्तिका उल्लेख किया है। श्रुत मुनिने प्रभाचन्द्रको अपना शास्त्रगुरु बतलाया है और उन्हें 'सारत्रयनिपुण' लिखा है। श्रुतमुनिने अपने परमागमसारको प्रशस्तिके अन्तमें भी प्रभाचन्द्रका स्मरण करते हुए उन्हें सारत्रयमें निपुण कहा है-वे सारत्रय हैं, समयसार प्रवचनसार और पञ्चास्तिकाय । अतः इन्हीं प्रभाचन्द्र को प्रवचन सरोज भास्करका कर्ता उन्होंने माना है। श्रुतमुनिने परमागमसार को शक सं० १२६३ ( ई. सन् १३४१ ) में समाप्त किया था। अतः प्रभाचन्द्रको उन्होंने ईसाकी १४वीं शताब्दी के प्रथमचरणमें हुआ बतलाया है। यदि यही प्रभाचन्द्र समयसार की उक्त टीकाके रचयिता हैं तो उनका समय भी यही होना चाहिये।
पूज्यपाद के समाधितंत्रपर भी प्रभाचन्द्र नामके अचार्यकी एक टीका है जो प्रकाशित हो चुकी है। वह टीका मूल ग्रन्थके श्लोकोंके पदोंको लेकर उनकी व्याख्या रूप है । जैसे प्रसन्न और लघुकाय मूल श्लोक है वैसी ही प्रसन्न और लघुकाय टीका भी है । उससे श्लोंकोंका अभिप्राय स्पष्ट हो जाता है ।
टीकाके अन्तमें प्रशस्ति रूपसे एक पद्य है जिसमें टीकाकारने अपना संक्षिप्त नाम प्रभेन्दु मात्र दिया है। उसके सिवाय अपने सम्बन्धमें कुछ भी नहीं लिखा । उसके पश्चात् अन्तिम वाक्य है-'इति श्रीपण्डित प्रभाचन्द्रविरचिता समाधितंत्र टीका समाप्ता।
इस टीकाके सम्पादक पं० श्री जुगल किशोरजी मुख्तारने अपनी प्रस्तावनामें
१. प्रव-सा० की प्रस्ता०, पृ० १०८-१०९ । २. जै० प्र० प्र० सं०, १ भाग, पृ० १९१ । ३. यह टोका वीर सेवा मन्दिर सरसावा ( सहारनपुर ) से प्रकाशित हुई है।
और इसके सम्पादक पं० जुगलकिशोर मुख्तार हैं ।