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अध्यात्म-विषयक टीका-साहित्य : १८९ उसके रचयिता पद्मप्रभ मलधारी देवने 'उक्तंञ्च षण्णवति पाषंडि विजयोपार्जित विशालकीतिभिर्महासेनपण्डितदेवः' तथा 'तथा चोक्तं श्री महासेन पण्डित देवः' लिखकर स्वरूप सम्बोधनका १२वा तथा चौथा श्लोक उदृत किया है।
किन्तु इस सम्बन्धमें विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि मडविद्रीके जैनमठमें जो इसकी अनेक प्रतियाँ हैं उनमेंसे अनेक प्रतियोंमें संस्कृत तथा कन्नड़टीका भी है । कन्नड़ ग्रन्थ सूचीमें स्वरूप सम्बोधन पञ्चविंशतिकी प्रतियोंके नीचे जो नोट दिये गये हैं उनसे यह बात प्रकट होती है । पृ० ३१ पर ग्रन्थ नं. २६ के नीचे लिखा है-कन्नड़ टीकाकार नयसेनके शिष्य महासेन तथा श्रोता सिद्धान्त चक्रवर्ती वासुपूज्य सिद्धान्तदेवके शिष्य पद्मरस है । ग्रन्थ नं० १०१ के नीचे लिखा है-वृत्तिकार पं० नयसेनके शिष्य पद्मसेन है । ग्रन्थ नं० १६२ के नीचे लिखा है-इसमें पण्डित महासेनकृत कन्नड़वृत्ति है । यह वृत्ति सूरस्तगणीय वासुपूज्य सिद्धान्तचक्रवर्तीके शिष्य पद्मरसके वास्ते पण्डित महासेन द्वारा रची गई। पृ० ३२ पर ग्रन्थ नं० ३१६ के नीचे लिखा है-'इसमें नयसेनके शिष्य महासेनकृत संस्कृत टीका तथा सिद्धान्त मुनि वासुपूज्यके शिष्य पद्म रसकृत कन्नड टीका है। ग्रन्थ नं० ५१४ के नीचे लिखा है-इसमें पद्मरसकृत कन्नड टीका और साथ ही साथ संस्कृत टीका भी है। ग्रन्थ नं० ५२९ के नीचे लिखा है। इसमें केशववर्यकृत कन्नड़ टीका है। ग्रन्थ नं० ५५२ के नीचे एक संस्कृत टीकाका प्रारम्भिक पद्य भी दिया है जो इसप्रकार है
स्वरूपसम्बोधनाख्यग्रन्थस्यानम्य तन्मुनिम् ।
रचितस्याकलङ्केन वृत्ति वक्ष्ये जिनं नमिम् ॥ यह संस्कृत टीका किसकी रची हुई है यह उसमें नहीं लिखा । ग्रन्थ नं० ३१६ में जो संस्कृत टीका है उसका रचयिता नयसेनके शिष्य महासेनको बतलाया है। यदि उक्त श्लोक उसी टीका है तो कहना होगा कि टीकाकार महासेन भी, जिन्हें मूलग्रन्थका कर्ता मान लिया गया है, अकलंकदेवको ही स्वरूप सम्बोधनका कर्ता मानते थे। और महासेन मूलग्रन्थके कर्ता नहीं थे बल्कि उसके टीकाकार ये। यदि स्वरूप सम्बोधन अकलंकदेवकी ही कृति है, जिसकी उक्त उल्लेखोंसे अधिक संभावना प्रतीत होती है और वे अकलंक प्रसिद्ध अकलंक ही है तो स्वरूप सम्बोधन विक्रमकी ७वी ८वीं शताब्दीकी रचना ठहरता है। और उस स्थितिमें अमृतचन्द्रके द्वारा उसकी शैलीका अनुकरण किया जाना सर्वथा संभव है।
शायद टीकाकार महासेनको मूलकार समझकर तो पद्मप्रभदेवने नियमसारकी टीकामें स्वरूप सम्बोधनके पद्योंको उनके नाममें उद्धृत नहीं कर दिया। किन्तु महासेनके साथ लगाये गये विशेषणोंसे ज्ञात होता है कि पद्मप्रभ महासेनसे