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________________ ८ : जैनसाहित्यका इतिहास संस्कृत लोकविभागसे प्राचीन लोकविभागके सम्बन्धमें केवल इतनी ही जानकारी प्राप्त होती है । संस्कृत लोकविभागके कर्ताने यद्यपि यह नहीं लिखा कि वह प्राचीन लोकविभाग किस भाषामें है; तथापि उसके संस्कृत रूपान्तरसे और आचार्य परम्परागत होनेसे यही व्यक्त होता है कि वह प्राकृतमें ही होगा। दूसरी बात यह भी ज्ञात नहीं होती कि उसका परिमाण कितना था । __ संस्कृत लोकविभागके कर्ताने अन्तमें ग्रन्थका प्रमाण १५२६ अनुष्टुप श्लोक बतलाया है । पर यह परिमाण मूल ग्रन्थका है अथवा उसके संस्कृत रूपान्तरका, यह स्पष्ट नहीं होता। उपलब्ध लोकविभागमें २२३० श्लोक हैं । इनमें ७०४ श्लोक अधिक है । १०० से अधिक गाथाएं तिलोय पण्णत्तिको, २०० पद्य आदि पुराणके और शेष गाथाएँ तिलोयसार; जंबूदीप पण्णत्ति, औलोक्यसंग्रह आदि ग्रन्थोंकी हैं । कही इनके नाम भी दिये हैं और कहीं 'उक्तंच' कहकर उद्धृत की है । संस्कृत लोकविभागमें जम्बू द्वीप, लवण समुद्र, मानुष क्षेत्र, द्वीप समुद्र, काल ज्योतिर्लोक; भवनवासीलोक, अधोलोक; व्यन्तरलोक, स्वर्गलोक और मोक्ष नामक ११ विभाग हैं । प्राचीन लोकविभागमें भी संभवतया इसी नामके इतने ही अधिकार रहे होंगे। उस लोकविभागके अन्तमें उसके रचयिता सर्वनन्दिने ग्रन्थ रचनाके काल, स्थान आदिका निर्देश किया होगा। उसी का संस्कृत रूपान्तर संस्कृत लोक विभागमें किया गया जान पड़ता है। और उससे उसके रूपान्तरकारका 'भाषायाः परिवर्तनेन' लिखना अक्षरशः सार्थक प्रतीत होता है। ___मुनि सर्वनन्दिके सम्बन्धमें श्री प्रेमीजीने लिखा है कि शक सम्बत् ३८८ का मर्करा का जो दानपत्र है उसमें कोण्डकुन्दान्वयके जिन छह मुनियोंके नाम है उनमें अभयनन्दि जयनन्दि, गुणनन्दि, और चन्द्रनन्दि नाम नन्जन्त हैं। सर्वनन्दि नाम भी ऐसा ही है और उनका लोकविभाग मकरा लेखसे आठ वर्ष पहलेका है । अर्थात् जिन अन्तिम चन्द्रनन्दिको दान दिया गया है, संभव है उन्हींके समकालीन हो और यापनीय हों। ___ जो कुछ हो, किन्तु सर्वनन्दिके विषयमें कुछ भी ज्ञात नही है। इस नामके किसी आचार्यका कोई प्राचीन अथवा अर्वाचीन उल्लेख भी दृष्टिगोचर नहीं होता। तिलोय' पण्णत्ति तिलोय पण्णत्ति या त्रिलोक प्रज्ञप्ति प्राचीन और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसके १. हिन्दी अनुवादके साथ तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थका प्रकाशन दो भागोंमें जीवराज जैन ग्रन्थमाला शोलापुरसे हुआ है।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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