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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ७ सुमेरु पर्वत एक लाख योजन ऊंचा हैं । उसके ऊपर ४० योजन ऊंची उसकी चूलिका है। चूलिकासे एक वालाग्रका अन्तर देकर स्वर्गाके विमान शुरू हो जाते हैं। स्वर्ग १६ है और युगलरूपसे ऊपर २ स्थित हैं । १६ स्वर्गाके ऊपर नौ वेयक हैं, उनके ऊपर नौ अनुदिश विमान है। उनके ऊपर पांच अनुत्तर विमान है । और उनके ऊपर सिद्ध लोक है ।
___ संक्षेपमें यह जैन खगोल भूगोल सम्बन्धी मान्यता है। वैदिक धर्म और बौद्ध धर्ममें भी इससे कुछ मिलती-जुलती और कुछ भिन्नताको लिये हुए मान्यताएं हैं । अस्तु, लोकविभाग (श०सं० ३८० वि० सं० ५१५)
दिगम्बर परम्परामें लोकानुयोग विषयक प्राचीन ग्रन्थ लोकविभाग था। यह ग्रन्थ अभी तक अनुपलब्ध है। परन्तु एक संस्कृत लोकविभाग उपलब्ध है जो उसीका परिवर्तित रूप है । उसके प्रारम्भमें कहा है कि लोक और अलोकके विभागोंको जानने वाले जिनेश्वरोंकी भक्तिपूर्वक स्तुति करके लोक तत्त्वका संक्षेप में व्याख्यान करता हूँ। और अन्तिम प्रशस्तिमें कहा है कि देवी और मनुष्योंकी सभामें तीर्थङ्कर महावीरने भव्यजनोंके लिये जो सारा जगत विधान कहा, जिसे मुधर्मा स्वामी आदिने जाना और जो आचार्योंकी परम्परा द्वारा चला आया, उसे ऋषि सिंहसूरने भाषाका परिवर्तन करके रचा और निपुण साधुओंने उसे सम्मानित किया। जिस समय उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें शनैश्चर वृष राषिमें, वृहस्पति तथा उत्तरा फाल्गुनिमें चन्द्रमा था तथा शुक्लपक्ष था, उस समय पांड्य राष्ट्रके पाटलिक ग्राममें पूर्वकालमें सर्वनन्दि मुनिने इस शास्त्रको लिखा था। कांची नरेश सिंह वर्माके २२वें संवत्सर और शकके ३८०वें संवत्सरमें यह ग्रन्थ समाप्त हुआ।
एक लाख योजनके अन्तर पर सप्तर्षि मण्डल है। सप्तषियोंसे भी सौ हजार योजन ऊपर समस्त ज्योतिश्चक्रका नाभिरूप ध्रुव मण्डल स्थित है।'-वि०
पु०, अंश २, अ०७। १. 'लोका लोकविभागज्ञान् भक्त्या स्तुत्वा जिनेश्वरान् ।
व्याख्यास्यामि समासेन लोकतत्त्वमनेकधा ॥१॥' २. 'भव्येभ्यः सुरमानुषोरुसदसि श्रीवद्धमानार्हता, यत्प्रोक्तं जगतो विधान
मखिलं ज्ञातं सुधर्मादिभिः । आचार्यावलिकागतं विरचितं तत् सिंहसूरषिणा, भाषाया परिवर्तनेन निपुणः सम्मानितं साधुभिः ॥१॥ वैश्वे स्थिते रविसुते वृषभे च जीवे राजोत्तरेषु सितपक्षमुपेत्य चन्द्रे । ग्रामे च पाटलिकनामनि पाण्ड्यराष्ट्र शास्त्र पुरा लिखितवान् मुनि सर्वनन्दिः ॥२॥ संवत्सरे तु द्वाविंशे काञ्चीशसिंह वर्मणः । अशीत्यग्ने शकामानां सिद्धमेतच्छतत्रये ॥३॥'