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________________ ६ : जैनसाहित्यका इतिहास पश्चिम दिशामें विद्युत्प्रभ नामक गजदन्त पर्वत हैं । ये चारों गजदन्ताकर पर्वत एक ओरसे सुमेरुको छूते हैं तो दूसरी ओरसे नील अथवा निषध पर्वतोंको। मेरुसे उत्तरमें गन्धमादन और माल्यवान्के मध्यमें उत्तरकुरु है और मेरुसे दक्षिणमें सौमनस और विद्युत्प्रभके मध्यमें दक्षिण कुरु है । भरत, ऐरावत और विदेह ये कर्म भूमियाँ हैं यहाँ से स्वर्ग, मोक्ष और नरक प्राप्त किया जा सकता है। शेप भोग भूमियाँ हैं। भरत और ऐरावतमें उत्सर्पिणी और अवसपिणी कालके छ समयोंके द्वारा सदा परिवर्तन हुआ करता है। किन्तु शेष क्षेत्रोंमें सदा एकसी स्थिति रहती है। भोगभूमिमें कल्पवृक्षोंसे प्राप्त वस्तुओंका उपयोग होता है वहाँ धर्म-कर्म नहीं है भोगकी ही प्रधानता है। मनुष्य सुखी स्वस्थ होते हैं। राज्य सत्ता नहीं होती । विदेहके उत्तर कुरु और दक्षिण कुरु प्रदेशमें भी भोगभूमि है। शेष विदेहसे सदा जीव मुक्ति लाभ करते हैं । इसीसे उसका नाम विगतदेह-विदेह है। जम्बू द्वीपकी तरह ही धातकी खण्ड और पुष्करार्धमें भी भारतादि क्षेत्र तथा वर्षधर पर्वत है उनकी संख्या और विस्तार दूना है। इसका विशेष कथन तिलोयपण्णति आदिसे जाना जा सकता है। यहाँ तो केवल परिचयकी दृष्टिसे थोड़ा आभास कराया गया है। ___इस समतलसे सात सौ नब्बे योजन ऊपर तारें हैं। तारोंसे दस योजन ऊपर सूर्य है । सूर्यसे ८० योजन ऊपर चन्द्रमा है । चन्द्रमासे चार योजन ऊपर नक्षत्र है। नक्षत्रोंसे चार योजन ऊपर बुध है। बुधसे तीन योजन ऊपर शुक्र है । शुक्रसे तीन योजन ऊपर वृहस्पति है। वृहस्पतिसे तीन योजन ऊपर मंगल है। मंगलसे तीन योजन ऊपर शनि है । यह ज्योतिषमण्डल' मनुष्यलोकमें सदा भ्रमण करता रहता है । उसीके भ्रमणसे मनुष्यलोकमें दिन रात होते हैं। १. 'भारतवर्षमें ही सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलि नामक ार युग हैं । अन्यत्र कहीं नहीं हैं ।x x जम्बू द्वीपमें भी भारतवर्ष श्रेष्ठ है क्योंकि यह कर्म भूमि है। इसके अतिरिक्त अन्यान्य देश भोगभूमियाँ हैं ।''"प्लक्ष द्वीपसे लेकर शाकद्वीप पर्यन्त छहों द्वीपोंमें सदा त्रेता युगके समान समय रहता है। इन द्वीपोंके मनुष्य सदा नीरोग रहकर पाँच हजार वर्ष तक जीते हैं। -वि० पु०, अं०, अ० ४ । २. 'पृथिवीसे एक लाख योजन दूर सूर्य मण्डल है । और सूर्य मण्डलसे भी एक लक्ष योजनके अन्तर पर चन्द्र मण्डल है। चन्द्रमासे पूरे सौ हजार योजन ऊपर सम्पूर्ण नक्षत्र मण्डल है। नक्षत्र मण्डलसे दो लाख योजन ऊपर शुक्र है । शुक्रसे उतना ही दूरी पर मगंल है। और मगंलसे भी दो लाख योजन ऊपर वृहस्पति हैं । वृहस्पतिसे दो लाख योजन ऊपर शनि है। शनिसे
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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