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________________ अध्यात्म-विषयक टीका-साहित्य : १८५ कुन्द-कुन्दके ग्रन्थ, उनपर अमृतचन्द्रकी टीका तथा अकलंकदेवका तत्त्वार्थवार्तिक आदि ज्ञात होते हैं। ज्ञानार्णवके साथ तुलना करनेसे एकका दूसरेपर कोई प्रभाव ज्ञात नहीं होता। रत्नकरंडश्रावकाचारका 'सदृष्टि ज्ञान वृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदुः' यह पद इसके ५१वें श्लोकका पूर्वार्ध है। यों तो पूरा ग्रन्थ संस्कृतके अनुष्टुप् श्लोकोंमें है किन्तु बीचमें कहीं-कहीं आर्यावृत्त भी पाये जाते हैं । एक आर्या इस प्रकार है स च मुक्ति हेतुरिद्धो ध्याने यस्मादवाप्यते द्विविधोऽपि । तस्मादभ्यसन्तु ध्यानं सुधियः सदाप्यपास्यालस्यं ॥३३॥ द्रव्य संग्रहकी नोचे लिखी गाथा बिल्कुल इसका रूपान्तर जैसी है दुर्विह पि मोक्ख हेउं झाणे पाउदि जं मुणी णियमा । तम्हा पयत्तचित्ता यूयं झाणं समन्मसह ॥४७॥ अतः यदि उक्त श्लोक तत्त्वानुशासनसे आलापपातमें लिया गया है तब तो अमृतचन्द्र और देवसेनके बीचमें काफी कालका अन्तराल होना संभव है। किन्तु यदि ऐसा नहीं है तो भी यह निश्चित है कि अमृतचन्द्र देवसेनसे पूर्ववर्ती हैं। अतः अमृतचन्द्रकी उत्तरकालावधि वि० सं० ९५० के लगभग समझना चाहिए। और पूर्वावधि अकलंकदेवके पश्चात् समझना चाहिए क्योंकि तत्त्वार्थसारकी रचनामें अमृतचन्द्रने अकलंकदेवके तत्त्वार्थवातिकका विशेष उपयोग किया है। और उसकी वार्तिकों को ही श्लोकोंका रूप दे डाला है । यथा निमित्तान्तरानपेक्षं संज्ञा कर्म नाम ॥१॥ सोयमित्यभिसम्बन्धत्वेन अन्यस्य व्यवस्थापनामात्र स्थापना ॥२॥ अनागतपरिणामविशेष प्रति गृहीताभिमुख्यं द्रव्यं ॥३॥ त० वा० । या निमित्तान्तरं किञ्चिदनपेक्ष्य विधीयते । द्रव्यस्य कस्यचित् संज्ञा तन्नाम परिकीर्तितम् ॥१०॥ सोऽयमित्यक्षकाष्ठादेः सम्बन्धेनान्यवस्तुनि । यद् व्यवस्थापनामात्रं स्थापना साभिधीयते ॥११॥ भाविनः परिणामस्य यत्प्राप्ति प्रति कस्यचित् । स्याद् गृहीताभिमुख्यं हि तद्व्यं ब्रुवते जिनाः ॥१२॥ त० सा० । इस तरहके उदाहरणोंकी बहुतायत है । अतः यह निश्चित है कि अमृतचन्द्र अकलंकदेवके पश्चात् हुए हैं। अकलंकदेवके समयकी उत्तरावधि विक्रमकी आठवीं शताब्दीके पश्चात् नहीं जा सकती। अतः विक्रमकी नौवी और दसवीं शताब्दीके अन्तरालमें अमृतचन्द्रका होना सुनिश्चित है। बहुतकुछ संभव तो
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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