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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १६५ १. हेमचन्द्राचार्यने अपने अपभ्रंश-व्याकरणके सूत्रोंके उदाहरणमें थोड़े बहुत परिवर्तनके साथ परमात्मा प्रकाशसे कुछ दोहे उद्धृत किये हैं तथा अन्य भी कुछ सामग्री ली है। जिससे यह प्रकट होता है कि हेमचन्द्र परमात्मप्रकाशसे परिचित थे । हेमचन्द्रका जन्म १०८९ ई० में हुआ था और स्वर्गवास ११७३ ई० में हुआ था। डा० उपाध्येका कहना है कि किसी भाषाके इतिहासमें यह कोई अनहोनी बात नहीं है कि साहित्यिक रूपमें अवतरित होनेके बाद ही उस भाषा के विशाल व्याकरणोंकी रचना की जाती है। अतः इस कल्पनाके लिए कि हेमचन्द्रके द्वारा निबद्ध अपभ्रंश ही उस समयकी प्रचलित भाषा थी, पर्याप्त साधनोंका अभाव है। यह कहना अधिक युक्ति संगत प्रतीत होता है कि अपने व्याकरणके द्वारा उन्होंने अपभ्रंशके साहित्यिक रूपको निबद्ध किया है। और यह रूप उनके समयमें प्रचलित भाषाके पूर्वका अथवा उससे भी अधिक प्राचीन रहा होगा; क्योंकि व्याकरणका आधार केवल बोल चालकी भाषा नहीं होती। अतः हेमचन्द्रसे कम से कम दो शताब्दी पूर्व जोइंदुका समय मानना होगा।
२. प्रो० हीरालालजीने दोहा पाहुडकी प्रस्तावना (पृ० २२) में लिखा है कि हेमचन्द्रने रामसिंहके दोहा पाहुडसे कुछ पद्य उद्धत किये हैं और रामसिंहने जोइंदुके योगसार और परमात्म प्रकाशसे बहुतसे दोहे लेकर अपनी रचनाको समृद्ध बनाया है। अतः जोइंदु हेमचन्द्रके केवल पूर्ववर्ती ही नहीं हैं किन्तु उन दोनोंके मध्यमें रामसिंह हुए हैं।
३. देवसेन कृत तत्त्वसारके अनेक पद्य परमात्म प्रकाशके ऋणी प्रतीत होते हैं । उदाहरणके लिये यहाँ दो तीन पद्य दिये जाते हैं
उदयह आणिविकम्मु मइँ जं भुजेवउ होइ । तं सइ आविउ खविउ मई सो पर लाहु जि कोइ ॥१८३॥-पर० प्र० २ । जं होइ भुजियव्वं कम्मं उदयस्स आणियं तवसा । सय मागयं च तं जइ सो लाहो णत्थि संदेहो ॥५०॥-त० सा० ।
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विसयकसायहि मणसलिलु ण वि डहुलिज्जइ जासु । अप्पा णिम्मलु होइ लहु वढ पच्चक्खु वि तासु ॥१५६।।-पर. प्र. २ । रायद्दोसादीहि य डहलिज्जइ णेव जस्स मणसलिलं । सो णियतच्चं पिच्छइ ण हु पिच्छइ तस्स विवरीओ ॥४०॥-त. सा.
इन दोनों पद्योंका पूर्वार्ध तो शब्दशः भी मेल खाता है। ऐसे और भी अनेक पद्य उपस्थित किये जा सकते हैं।