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१६२ : जैनसाहित्यका इतिहास मूलमें सम्मिलित कर लिया गया है और दूसरा स्थल संख्याबाह्य प्रक्षेपक, जो मूलमें सम्मिलित नहीं किया गया है । तदनुसार प्रथम अधिकारमें मूल पद्य ११८, प्रक्षेपक ५ और स्थ० बा० प्र० ३ हैं। दूसरे अधिकारमें मूल पद्य २१४ और स्थ० बा० प्र० ५ हैं। किन्तु जिन आठ पद्योंको उन्होंने मूलमें सम्मिलित नहीं किया उनकी भी उन्होंने टीका की है।
मलधारी बालचन्द्रने परमात्म प्रकाशपर कन्नड़ में एक टीका लिखी है। उन्होंने लिखा है कि मैंने ब्रह्मदेवकी टीका से सहायता ली है किन्तु उनके मूलमें ब्रह्मदेवके मूलमे ६ पद्य' अधिक है।
छन्दब्रह्मदेवके मूलके अनुसार परमात्म प्रकाशमें सब ३४५ पद्य है । उनमें ५ गाथाएं, एक स्रग्धरा और एक मालिनी है किन्तु इनकी भाषा अपभ्रंश नहीं है । तथा एक चतुष्पादिका और शेष ३३७ दोहे हैं जो अपभ्रंशमें हैं।
विषय परिचय-प्रारम्भके सात दोहोंके द्वारा पंच परमेष्ठीको नमस्कार करनेके पश्चात् भट्ट प्रभाकर जोइंदुसे निवेदन करता है
मउ संसारि बसंताह सामिय काल अणंतु । पर मई किं पि ण पत्तु सुहु दुक्ख जि पत्तु महंतु ॥९॥ चउगइ दुक्खहं तत्ताहं जो परमप्पउ कोई ।
चउगइ-दुक्ख-विणासयरु कहहु पसाएँ सो वि ॥१०॥ 'हे स्वामिन्' इस संसारमें रहते हुए अनन्त काल बीत गया। परन्तु मैने कुछ भी सुख नहीं पाया। उल्टा महान दुःख ही पाया । अतः चारों गतियोंके दुःखोंसे संतप्त प्राणियोंके चारो गति सम्बन्धी दु:खोंका विनाश करनेवाला जो कोई परमात्मा है उसका भी स्वरूप कहो ।
इसके उत्तरमें जोइन्दु कहते हैं कि आत्माके तीन प्रकार हैं-मूढ़, विचक्षण और ब्रह्म । जो शरीरको ही आत्मा मानता है वह मूढ़ है ॥१३॥ जो शरीरसे भिन्न ज्ञानमय परमात्माको जानता है वह विचक्षण या पण्डित है ॥४॥ और जिसने कर्मोको नाश कर और शरीर आदि पर द्रव्योंको छोड़ कर ज्ञानमय आत्माको प्राप्त कर लिया है वह परमात्मा है ।।१५।।
कुन्दकुन्दाचार्य और पूज्यपादने आत्माके जिन तीन प्रकारोंका कथन बहिरात्मा अन्तरात्मा और परमात्माके नामसे किया है, जोइन्दुने उन्हींका कथन मूढ़, पण्डित और ब्रह्म या परमात्माके नामसे किया है। कुन्दकुन्दकी ही तरह जोइंदु भी नित्य, निरंजन, ज्ञानमय परमानन्द स्वरूप परमात्माका स्वरूप इसप्रकार बतलाते हैं
१. इनके लिए देखो-प० प्र० की प्रस्ता०, पृ० ९५