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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १६१
परमात्म प्रकाश-यह ग्रन्थ भट्ट प्रभाकरके निमित्तसे लिखा गया है यह बात आदि और अन्तमें ग्रन्थकारने स्वयं स्वीकार की है। तथा मध्यमें भी कई स्थलोंपर भट्ट प्रभाकरको संबोधन करते हुए कथन किया गया है। प्रभाकर भट्ट प्रख्यात मीमांसक भी होगया है जो कुमारिलका समकालीन था । किन्तु यह भट्ट प्रभाकर उससे भिन्न होना चाहिए। ग्रन्थकारने लिखा है-पण्डित जनोको इस ग्रन्थमें पुनरुक्ति दोष नहीं देखना चाहिए; क्योंकि भट्ट प्रभाकरके कारण मैंने उसी बातको बारंबार कहा है । अतः भट्ट प्रभाकर परमात्माके स्वरूपको जाननेका इच्छुक कोई मुमुक्षु योगी था। यद्यपि इस ग्रन्थसे ऐसा प्रतीत होता है । इसीसे यह ग्रंथ मुख्य रूपसे मुनियोंको लक्ष्य करके रचा गया है। तथापि साधारणजनोंके लिए भी यह अत्यन्त हितकर है। क्योंकि ग्रन्थकारने ग्रन्थके अन्तमें कहा है-'जो मुनि भाव पूर्वक इस परमात्म प्रकाशका चिन्तन करते हैं वे समस्त मोहको जीतकर परमार्थको जानते है। अन्य भी जो भव्य जीव इस परमात्म प्रकाशको जानते हैं वे भी लोक और अलोकका प्रकाश करनेवाले प्रकाश (ज्ञान) को प्राप्त करते हैं । ॥२०४-२०५॥
शैली और भाषा-ग्रन्थकी शैली बहुत सरल है । इसका प्रथम कारण तो भट्ट प्रभाकर ही जान पड़ता है । उसको समझानेके लिए इसे सरल शैलीमें रचा गया जान पड़ता है। एक ही बातको बारंबार कहा गया है जिससे श्रोता समझ जायें। इसीसे शायद इसमें पारिभाषिक शब्दोंका भी बाहुल्य नहीं है। इसकी भाषा सुगम अपभ्रंश है। अपभ्रंश भाषाका सबसे पहले प्रकाशित होनेवाला यही ग्रन्थ है। और संभवतया अवतक प्रकाशित अपभ्रंश साहित्यमें यह सबसे प्राचीन भी है। संस्कृत टीकाकार ब्रह्मदेवने परमात्म प्रकाशके दो भाग किये हैं। प्रथम अधिकारमें १२६ और दूसरेमें २१९ पद्य है। इनमें क्षेपक भी सम्मिलित है। ब्रह्मदेवने क्षेपकके भी दो भेद किये है-एक प्रक्षेपक जिसे
१ इत्थु ण लेवउ पंडियहिं गुणदोसु वि पुणरुत्तु । भट्ट पभायर कारणइँ मइँ
पुण-पुणु वि पउत्तु ॥२११।। पर० प्र० २ । २. सन् १९०९ में देववन्दके बाबू सूरजभानु वकीलने हिन्दी अनुवादके साथ
इस ग्रन्थको प्रथमवार प्रकाशित किया था। सन् १९१५ में इसका अंग्रेजी अनुवाद आरासे प्रकाशित हुआ। सन् १९१६ में रायचन्द शास्त्र माला बम्बईने ब्रह्मदेवकी संस्कृत टीका और हिन्दी टीकाके साथ इसे प्रकाशित किया। १९३७ में उक्त शास्त्रमालाने डॉ० ए० एन० उपाध्यसे सम्पादित कराकर उसका दूसरा संस्करण प्रकाशित किया। उसकी प्रस्तावनाका उपयोग इस ग्रन्थके परिचयादिमें किया गया है।
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