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५५४ : जैनसाहित्यका इतिहास
चेतनाके दो भेद हैं-ज्ञान चेतना और अज्ञान चेतना । ज्ञानके सिवाय अन्य वस्तुमें मैं इसका करता हूँ इस प्रकारकी चेतना कर्म चेतना है। और ज्ञानके सिवाय अन्यमें इसका मैं अनुभविता हूँ इस प्रकारकी चेतनाको कर्मफल चेतना कहते हैं ये दोनों अज्ञान चेतनाके ही भेद है। यह अज्ञान ही संसारका बीज है। यही बात गाथा ३८७-३८९ में बतलायी है । आगे पन्द्रह गाथाओंके द्वारा ज्ञानको ज्ञेयोंसे भिन्न बतलाया है। यथा-शास्त्र ज्ञान नहीं है क्योंकि शास्त्र कुछ भी नहीं जानता। अतः शास्त्र भिन्न है और ज्ञान भिन्न है। शब्द ज्ञान नहीं है क्योंकि शब्द कुछ भी नहीं जानता। अतः शब्द अन्य है और ज्ञान अन्य है । इस तरहसे अनेक उदाहरणोंके द्वारा ज्ञानको ज्ञेयोंसे भिन्न बतलाकर अन्तमें कहा है-'चूँ कि आत्मा सदा जानता है अतः वह ज्ञायक होनेसे ज्ञानी है और ज्ञान ज्ञायकसे अभिन्न है ॥४०३॥ अतः ज्ञान ही सम्यग्दृष्टि है। ज्ञान ही संयम है ज्ञान ही द्वादशांगसूत्र रूप है। ज्ञान ही धर्माधर्म है और ज्ञान ही प्रव्रज्या है।४०४॥ ज्ञान न तो कुछ ग्रहण करता है और न कुछ छोड़ता है। क्योंकि ग्रहण करना और छोड़ना इसका स्वभाव नहीं है । वह तो केवल जानता मात्र है। ___ आगे कहा है-अनेक प्रकारके साधु-लिंगों और गृहस्थ-लिंगोंको धारण करके मूढजन कहते हैं कि यह लिंग मोक्षका मार्ग है ।।३०८॥ किन्तु लिंग मोक्षका मार्ग नहीं है क्योंकि लिंग शरीराश्रित होता है और शरीरसे निर्मोही अर्हन्त लिंगको त्यागकर दर्शन ज्ञान और चारित्रको आराधना करते हैं ॥४०९।। अतः लिंग मोक्षका मार्ग नहीं है किन्तु दर्शन ज्ञान चारित्र ही मोक्षका मार्ग है ॥४१०॥ इसलिये साधु और गृहस्थोंके द्वारा गृहीत लिंगमें ममत्व छोड़कर दर्शन ज्ञान चारित्रमें अपनेको लगा ॥४११॥ जो साधुलिंगों और गृहस्थलिंगोंमें ममत्व करते हैं वे समयसारको नहीं जानते ॥४१३॥ व्यवहारनय साधुलिंग और गृहस्थलिंग दोनोंको मोक्षमार्गमें स्वीकार करता है। किन्तु निश्चयनय मोक्षमार्गमें किसी भी लिंगको स्वीकार नहीं करता ॥४१४॥
इस तरह ४१५ गाथाओंमें समयसार पूर्ण होता है । यह गाथा संख्या अमृतचन्द्रसूरिकी टीकाके अनुसार है जयसेनाचार्यकी टीकाके अनुसार समयसारकी पद्यसंख्या ४३९ है।
समयसारमें यों तो गाथाएँ ही हैं, किन्तु ४ अनुष्टुप् भी है । पूज्यपाद देवनन्दि
विक्रमकी छठी शताब्दीमें पूज्यपाद देवनन्दि नामके एक समर्थ जैनाचार्य हो गये हैं । यह सिद्धान्त शास्त्र, व्याकरण शास्त्र और वैद्यक शास्त्रमें निष्णात थे और उन्होंने उक्त तीनों ही विषयोंपर संस्कृत भाषामें अन्य रचना की है । इनके