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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १३७ में समयके दो भेद किये हैं-स्वसमय और परसमय । जो जीव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप आत्मस्वभावमें स्थित है वह स्वसमय है और जो जीव पौद्गलिक कर्मजन्य भावोंमें स्थित है वह परसमय है। इस तरह जीव अथवा आत्माको ही समय कहा है । इस गाथाकी टीकामें अमृतचन्द्रसूरिने 'सम्' उपसर्ग पूर्वक अय् धातुसे 'समय' शब्दको निष्पत्ति की है । 'सम्' अर्थात् एकरूपसे 'अयति' ( सबको एक साथ ) जानता है वह समय अर्थात् जीव या आत्मा है।
पञ्चास्तिकायमें पांचों द्रव्योंके समवायको समय कहा है और समयसारमें आत्माको ही समय कहा है। क्योंकि पञ्चास्तिकायमें मुख्य रूपसे पाँचों द्रव्योंका कथन है और समयसारमें केवल जीवतत्त्वका ही मुख्य रूपसे कथन है ।
इससे यह फलित होता है कि प्रत्येक द्रव्य 'समय' पद वाच्य है जैसा कि अमृतचन्द्राचार्यने समयसार ( गा० ३ )की टीकामें लिखा है। उन्होंने लिखा है कि यहाँ 'समय' शब्दसे सभी पदार्थ कहे गये हैं। क्योंकि सभी द्रव्य 'सम्' एक रूपसे अपने गुणपर्यायोंको 'अयति' प्राप्त करते हैं । इस व्युत्पत्तिके अनुसार पञ्चास्तिकायमें जो समय शब्दका अर्थ किया है वह भी ठीक घटित हो जाता है और समयसारमें जो समयका अर्थ जीव किया है वह भी घटित होता है।
किन्तु समय शब्दका यह अर्थ जो कुन्दकुन्दाचार्यने किया है, अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता। इतर मतोंकी तो वात ही क्या, श्वेताम्बर साहित्यम भी यह अर्थ नहीं पाया जाता । अनुयोगद्वार सूत्रमें तथा यतिवृपभकृत चूर्णिसूत्रमें वक्तव्यताके तीन भेद किये हैं-स्वसमय वक्तव्यता, परसमय वक्तव्यता, और तदुभय वक्तव्यता । यहाँ स्वसमयका अर्थ स्वमत और परसमयका अर्थ परमत ही है। सिद्धसेन दिवाकरने अपने सन्मति तर्कमें भी समयके स्वसमय और परसमय भेद किये हैं। किन्तु यहाँ भी उसका अर्थ स्वमत और परमत या जैनसिद्धांत और इतरसिद्धांत ही है। अतः समयका अर्थ आत्मा कुन्दकुन्दाचार्यने ही किया है उसी समयका कथन समयसार में है।
उस समय अथवा आत्माके दो रूप हैं-एक शुद्ध रूप और एक अशुद्ध रूप । अपने शुद्ध गुणपर्याय रूप परिणत शुद्ध आत्मा स्वसमय है और पौद्गलिक कर्मबन्धनसे बद्ध अशुद्ध पर्याय रूप परिणत आत्मा परसमय है ।
कुन्दकुन्दाचार्यने समयसारमें स्वसमय रूप आत्माका प्रधान रूपसे कथन किया है। वह कहते हैं कि पर सम्बन्धसे रहित स्व स्वरूपमें स्थित आत्मा लोकमें सर्वत्र सुन्दर प्रतीत होता है । अतः उसके बन्धकी कथा कहनेसे विसंवाद उत्पन्न हो सकता है। किन्तु काम भोग और बन्धकी कथा तो लोगोंको श्रुत (सुनी