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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १२९ केवली भद्रवाहुकी देन था । उसी तरह उन्होंने अपने ग्रन्थोंके नाम पाहुडान्त रखकर प्राचीन श्रुत परिपाटीके प्रति अपनी आस्थाको प्रकट करनेके साथ ही साथ अपने ग्रन्थोंको भी उसीका अंगभूत दर्शाया है। कुन्दकुन्दके पश्चात् रचे गये ग्रन्थोंमें पाहुडान्त नाम क्वचित् ही पाया जाता है। कसायपाहुड' पर चूर्णिसूत्रोंके रर्चा ता आचार्य यतिवृषभने 'जह्मा पदेहि पुदं ( फुडं ) तह्मा पाहुडं' ऐसी पाहुड शब्दकी निरुक्ति की है। अर्थात् पदोंसे स्फुट है-व्यक्त है इसलिये उसे पाहुड़ कहते हैं । 'पाहुड़' प्राकृत शब्द है उसका संस्कृत रूप प्राभूत' होता है । कसायपाहुड़की जयधवला टीकाके रचयिता वीरसेन स्वामीने प्राभृत शब्दकी निरुक्ति इस प्रकारकी है-'प्रकृष्ट अर्थात् तीर्थङ्करोंके द्वारा जो आभृत् अर्थात् प्रस्थापित किया गया है वह प्राभृत है। अथवा जिनका विद्या ही धन है ऐसे प्रकृष्ट आचार्योंके द्वारा जो धारण किया गया है अथवा व्याख्यान किया गया है, अथवा परंपरा रूपसे लाया गया है वह प्राभृत है । प्राभृत शब्दकी ये निरुक्तियाँ कुन्दकुन्दाचार्यके ग्रन्थोंमें सुघटित होती हैं। उन्होंने जो कुछ कहा है वह तीर्थङ्करोंके द्वारा प्रस्थापित किया गया है, तथा श्रुतकेवली भद्रबाहु जैसे आचार्योंके द्वारा धारण किा गया और लाया गया है । तथा कुन्दकुन्द जैसे महान् आचार्यके द्वारा ाान किया गया है। अतः उनके ग्रन्थोंका पाहुडान्त नाम यथार्थ हैं।
दर्शनप्राभृत, चारित्रप्राभृत, सूत्रप्राभृत, बोधप्राभृत, भावप्राभृत, मोक्षप्राभृत, लिंगप्राभत, शीलप्राभृत, रयणसार, वारह अणुवेक्खा, समयसार, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय और नियमसार, अभी तक कुन्दकुन्द स्वामीके द्वारा रचित इतने ही ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इनके सिवाय जो अन्य ग्रन्थ कुन्दकुन्द रचित कहे जाते हैं किन्तु अनुपलब्ध हैं, उनके नाम इस प्रकार है-१. आचारपाहुड', २. आलापपाहुड, ३. अंग (सार) पाहुड, ४. आराधना (सार) पाहुड, ५. बंध (सार) पाहुड, ६. बुद्धि या बोधि पाहुड, ७. चारणपाहुड, ८. चूलिपाहुड, ९. चूणिपाहुड, १०. दिव्वपाहुड, ११. द्रव्य (सार) पाहुड, १२. दृष्टिपाहुड, १३. इयन्तपाहुड, १४. जीवपाहुड, १५. जोणि (सार) पाहुड, १६. कर्मविपाकपाहुड, १७.
१. क. पा०, भाग १, पृ० ३२६ । २. 'प्रकृष्टेन तीर्थकरेण आभृतं प्रस्थापितं इति प्राभृतम् ।
प्रकृष्टैराचार्यविद्यावित्तवद्भिराभुतं धारितं व्याख्यानमानीतमिति वा
प्राभृतम् ।'-क० पा०, भा० १, पृ० ३२५ । ३. प्रवचनसारकी डा० उपाध्ये लिखित अंग्रेजी प्रस्तावनासे यह सूची दी गई
है। इनमें अनेक नाम कल्पित प्रतीत होते हैं।