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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १२५ वर्षे सप्तशते चैव सप्तत्या च विस्मृतौ ।
उमास्वामि मुनिर्जातः कुन्दकुन्दस्तथैव च ॥ इसमें बतलाया है कि उमास्वामी आचार्य वीरनिर्वाणसे ७७० वर्ष बाद हुए। अथवा ७७० वर्ष तक उनके समयकी मर्यादा है। पीछेसे 'कुन्दकुन्दस्तथैव च' लिखकर यह सूचित किया है कि कुन्दकुन्दका भी यही समय है अथवा कुन्दकुन्द भी इसी समयके भीतर हो गये हैं।
सरस्वती गच्छकी पट्टावलीमें तो कुन्दकुन्दके अनन्तर ही उमास्वामीका आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होना लिखा है और उससे ऐसा प्रकट होता है मानों उमास्वामी कुन्दकुन्दके शिष्य थे। परन्तु श्रवणवेलगोलाके शिलालेखोंमें उमास्वामीका कुन्दकुन्दसे ठीक बादमें उल्लेख न करके 'तदन्वये' और 'तदीयवंशे' शब्दोंके द्वारा कुन्दकुन्दका वंशज प्रकट किया है। मुख्तार सा० कहना है कि यह वंशजत्व कुछ दूरवर्ती मालूम नहीं होता। हो सकता है कि उमास्वाति कुन्दकुन्दके शिष्य न होकर प्रशिष्य रहे हों और इसीसे 'तन्वये' आदि पदोंके प्रयोगकी जरूरत पड़ी हो। इस तरह भी दोनों कितने ही अंशोंमें समकालीन हो सकते हैं और उमास्वामीके समयकी समाप्तिको प्रकारान्तरसे कुन्दकुन्दके समयकी समाप्ति भी कहा जा सकता है। शायद यही वजह हो, जो उक्त पद्यमें उमास्वातिका समय बतलाकर पीछेसे 'कुन्दकुन्दस्तथैव च' शब्दोंके द्वारा यह सूचित किया गया है कि कुन्दकुन्दका भी यही समय है।
उक्त श्लोकसे उमास्वातिका समय वि० सं० ३०० या ३०० तक जाता है। और चूंकि वे कुन्दकुन्दके ही अन्वयमें होते हुए भी दोनोंके बीचमें दीर्घकालका अन्तर नहीं था अतः कुन्दकुन्दका उक्त समय वि० सं० १८०-२३० उचित ही है । यह समय डा० उपाध्येके द्वारा अनुमापित समय (ईस्वी सन् की प्रथम दो शताब्दी) के भी अनुकूल है।।
कुन्दकुन्द और यतिवृषभ
इन्द्र नन्दिके श्रु तावतारमें यह भी लिखा है कि कषाय प्राभूत ग्रन्थ भी कुन्दकुन्दको प्राप्त हुआ था तथा उस कषाय प्राभूतमें गुणधर रचित गाथा सूत्र, यतिवृषभ रचित चूर्णिसूत्र और उच्चारणाचार्य रचित उच्चारणावृत्ति सम्मिलित १. 'अभूदुमास्वातिमुनिश्वरोऽसावाचार्यशब्दोत्तरगृद्धपिच्छः । तदन्वये तत्सदृशोऽ
स्ति नान्यस्तात्कालिकाशेषपदार्थवेदी ॥७॥-जै. शि० सं० भा० १, ले० नं० ४०, ४२, ४३, ४७, ५० ।। अमृदुमास्वातिमुनिः पवित्रे वंशे तदीये सकलार्थवेदी। सूत्रीकृतं येन जिनप्रणीतं शास्त्रार्थ जातं मुनिपुंगवेन ॥११॥-जै० शि० सं० भा० १, ले० नं० १०८।