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१२४ : जैनसाहित्यका इतिहास माघनन्दिके पश्चात् धरसेन और किर क्रमशः पुष्पदन्त और भूतबलिका नाम आया है। किन्तु सरस्वती गच्छकी पट्टावलीमें माघनन्दिके पश्चात् जिनचन्द्र और फिर कुन्दकुन्दका नाम आया है। यदि धरसेनके पूर्वज माघनन्दि और जिनचन्द्रके पूर्वज माघनन्दि एक ही व्यक्ति हैं तो कुन्दकुन्द के गुरु जिनचन्द्र धरसेनाचार्यके समकालीन होने चाहिये और तब कुन्दकुन्द भी पुष्पदन्त भूतबलिके समकालीन ठहरते हैं। ___ इससे हम इसी परिणाम पर पहुंचते हैं कि षट्खण्डागमके आद्य भाग पर परिकर्म नामक ग्रन्थके रचयिता कुन्दकुन्द भूतबलि पुष्पदन्तसे अधिक समय पश्चात् नहीं हुए । अतः उनका काल वीरनिर्वाण ६५० से ७०० तक ( वि०सं० १८० से २३० तक ) मानना ही समुचित प्रतीत होता है।
__ सरस्वती गच्छकी पट्टावलीमें जो कुन्दकुन्द स्वामीका पट्टारोहण काल वि. सं० ४९में लिखा है वह कई भूलोंका परिणाम जान पड़ता है। प्रथम तो उसमें भद्रबाहु द्वितीयका पट्टारोहण काल वि०सं० ४ से २६ तक दिया है जबकि नन्दिसंघकी प्राकृत पट्टावलीके अनुसार वीरनिर्वाण ४९२ से ५१५ तक ( वि०सं० २२ से ४५ ) होता है। यह १८ वर्षका अन्तर विक्रम संवत्की प्रवृत्तिके विषयमें मतभेदके कारण हुआ जान पड़ता है क्योंकि पट्टावलीमें वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका जन्म माना है। १८ वर्षकी उम्रमें वह गद्दी पर बैठा था। अतः उसमें राज्यकालसे विक्रम संवत्की प्रवृत्ति मानकर वैसा लिखा है। पट्टावलीमें लिखा भी है-'बहुरि' विक्रमके राजपद मैं वर्ष चत्वारि ४ पोछ पूर्वोक्त भद्रबाहुकू आचार्यका पट्ट हुआ ।' ___ इस तरह १८ वर्षका तो यह अन्तर रहा। तथा इस पट्टावलीमें गुप्तिगुप्त उपनाम अर्हद्वलिका पट्टासीन काल ९॥ वर्ष, माघनन्दिका ४॥ वर्ष माना है जबकि प्राकृत पट्टावलीमें अर्हद्वलिका २८ वर्ष और माघनन्दिका २१ वर्ष काल माना है। इस प्रकार पट्टासीन कालमें भी अन्तर होनेसे हमारे निर्धारित किये हुए कालमें और सरस्वती गच्छकी पट्टावलीके कालमें इतना अन्तर पड़ गया है । वैसे पट्टावलीसे कुन्दकुन्दके उक्त कालकां समर्थन होता है।
एक अन्य आधारसे भी उक्त कालका समर्थन होता है। विद्वद्जन बोधकमें नीचे लिखे श्लोक को उमास्वामीके समय वर्णनका प्रसिद्ध श्लोक लिखा है।
श्लोक इस प्रकार है
१. ई० एं०, जि० २१, पृ० ५७ पर प्रो० हानले का लेख-'Three Patta
valies of the Digambaras'ı २. र० श्रा० की प्रस्ता०, पृ० १४७ ।