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१२२ : जेनसाहित्यका इतिहास ग्रंथ कोण्डकुन्द पुरमें पद्मनन्दिको प्राप्त हुए और उन्होंने षट्खण्डागमके आद्य तीन खण्डों पर परिकर्म नामका ग्रंथ रचा यथार्थ है। अतः कुन्दकुन्दके समय निर्धारणके लिये इन्द्रनन्दिके श्र तावतारका कथन ही दृढ़ आधार हो सकता है
और इसलिये श्री प्रेमी जीने तथा मुख्तार साहबने जो उसको आधार बनाकर कुन्दकुन्दके समयका विचार किया हो वह समुचित प्रतीत होता है ।
तिलोयपण्णत्तिसे लेकर श्रुतावतार पर्यन्त ग्रंथों में महावीर निर्वाणसे लेकर अन्तिम एकांगधारी लोहाचार्य तक ६८३ वर्ष होते हैं। किन्तु नन्दी संघकी प्राकृत' पट्टावलीके अनुसार ५६५ बर्ष ही होते हैं इसका कारण यह है कि अन्यत्र पांच एकादशांगधारियों और चार एकांगधारियोंका समय अलग अलग २२० और ११८ वर्ष बतलाया है। किन्तु इस पट्टावलीमें उनका समय क्रमशः १२३ और ९७ वर्ष बतलाया है। अर्थात् २२० वर्षके भीतर नौ ही आचार्य आ जाते हैं। इस तरह ११८ वर्ष शेष रहते हैं। साथ ही पाँच और चार आचार्योंका काल भी २२० और ११८ वर्षों के स्थानमें १२३ और ९७ वर्ष उचित प्रतीत होता है ।
इसके सिवाय तिलोयपण्णति आदिमें उक्त पाँच आचार्योंके पश्चात् होने वाले आचार्योंको एक अंगका धारी बतलाया है जब कि वे पाँच आचार्य ग्यारह अंगोंके धारी थे। इस तरह अकस्मात् दस अंगोंके लोप होनेकी बात खटकती है। किन्तु पट्टावलीमें उन्हें क्रमशः दस, नौ, आठ अंगोंका धारक बतलाया है। जो उचित प्रतीत होता है।
पट्टावलीके अनुसार शेष ११८ वर्षों में पाँच आचार्य एकांगधारी हुए उनके नाम क्रमसे अर्हद्वलि, माघनन्दि, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबली थे। अतः पट्टावलीके अनुसार वीर निर्वाणसे ६१४ वर्ष बाद धरसेनाचार्य हुए और भूतबली पर्यन्त ६८३ वर्ष पूर्ण हुए।
धवलामें जोणीपाहड नामक एक ग्रन्थका निर्देश है जो मंत्र तंत्रसे सम्बद्ध था। वि० सं० १५५६में लिखी गई वहटिप्पणिका नामक ग्रन्थ सूचीमें इसे धरसेन कृत बतलाया है और उसका रचना काल वीरनिर्वाणसे ६०० वर्ष बाद बतलाया है। इससे भी पट्टावलीमें दिये गये कालकी पुष्टि होती है। संभव
१. जै० सि० भा०, भाग १, कि० ४, पृ० ७३ । २. 'जोणिपाहुडे भणिद मंत-तंत-सत्तीओ पोग्गलाणुभागोत्ति घेतव्यो'
-षट् खं०, पु० १३, पृ० ३४९ । २. 'योनिप्राभृतं वीरात् ६०० धारसेनम् । वृहटिप्प० जै० सा० सं० भा० १ ।