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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १२१ प्रो० चक्रवर्तीने पट्टावली प्रतिपादित समयको ठीक मानकर तथा उपलब्ध सूचनाओंको आधार बनाकर उनके द्वारा पट्टावली प्रतिपादित समयका ही समर्थन किया है। डा० उपाध्येने प्रो० चक्रवर्तीके उन आधारोंको तो सुदृढ़ नहीं माना जिनके आधार पर उन्होंने पट्टावली प्रतिपादित समयका समर्थन किया है, किन्तु मान्य उसी समयको किया है । इनमेंसे प्रो० चक्रवर्तीने तो श्रुतावतारमें वर्णित इतिवृत्तका स्पर्श ही नहीं किया । संभवतया उस समय उनकी दृष्टिमें वह आया नहीं होगा। किन्तु डा० उपाध्येने प्रो० चक्रवर्तीके आधारोंकी तरह श्रुतावतारकी वार्ताकी भी समीक्षा कर डाली । यह तो उन्होंने माना है कि श्रु तावतारमें कुन्डकुन्डपुरके जिस पद्मनन्दिका नाम आया है वह आचार्य कुन्दकुन्द ही हैं किन्तु कुन्दकुन्दके द्वारा षट्खण्डागमके आद्य तीन खण्डों पर परिकर्म नामक ग्रन्थके रचे जानेवाली बात उन्हें मान्य नहीं है क्योंकि षट्खण्डागमकी टीका धवलामें तथा कसायपाहुड़की टीका जयधवलामें परिकर्मका कोई उल्लेख उन्हें नहीं मिला और न अन्यत्रसे ही उन्हें उसके सम्बन्धमें कोई सूचना मिली । तथा विबुध श्रीधरके श्रुतावतारमें चूंकि कुन्दकुन्दके शिष्य कुन्दकीतिको उसको कर्ता बतलाया है, इससे डा० उपाध्येने इन्द्रनन्दिके कथनकी यथार्थतामें तो सन्देह किया और उसके आधार पर उसे अमान्य ठहरा दिया, किन्तु इस ओर ध्यान नहीं दिया कि षट्खण्डागमके आद्य तीन खण्डोंके ऊपर परिकर्म नामक ग्रन्थ रचे जानेकी बातको विबुध श्रीधर भी मान्य करता है। प्रश्न केवल यह रह जाता है कि कुन्दकुन्दने उसे रचा या उनके शिष्य कुन्दकोतिने रचा । कुन्दकुन्दके कोई कुन्दकीर्ति नामका शिष्य था, इसका कोई संकेत तक अन्यत्र नहीं मिलता
और न दिगम्बर जैन गुरु परम्परामें कुन्दकीर्ति नामके किसी आचार्य या विद्वान्का ही संकेत मिलता है। डा० उपाध्येने कुन्दकुन्दकी जो कथा उद्धृतकी है उसमें कुन्दकुन्दके पिताका नाम कुन्द श्रेष्ठी और माताका नाम कुन्दलता लिखा है। जैसे कथा लेखकने कुन्दकुन्द नामके ऊपरसे उनके माता पिताके नाम कल्पित कर लिये, इसी तरह विबुध श्रीधरने या जहाँसे उसने यह लिया हो उसने कुन्दकुन्द नाम परसे उनके शिष्य कुन्दकीर्तिकी कल्पना कर ली। कथाके दोनों नामोंमें जितना और जैसा तथ्य है उतना और वैसा ही तथ्य विबध श्रीधरके कुन्दकीतिमें है अतः वह उपेक्षणीय है।
परिकर्म नामका एक महान् ग्रंथ वीरसेन स्वामीके सामने वर्तमान था। धवला टीकामें उसके उद्धरण बहुतायतसे पाये जाते हैं। उसके सम्बन्धमें षट्खण्डागमकी टीकाओं पर विचार करते समय पीछे विस्तसे प्रकाश डाला जा चुका है और यह भी सिद्ध करनेका प्रयत्न किया गया कि उसके रचयिता कुन्दकुन्दाचार्य होने चाहिये । अतः इन्द्रनन्दिका यह लिखना कि दोनों सिद्धान्त