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________________ १२० : जैनसाहित्यका इतिहास जाते हैं उनमें कुन्दकुन्दान्वयका उल्लेख किया जाता है जब कि कुन्दकुन्दको हुए लगभग दो सहस्राब्द बीत रहे हैं। इसके सिवाय पूज्यपाद देवनन्दि प्रथम दिगम्बर जैन टीकाकार है जिन्होंने तत्वार्थसूत्र पर सर्वार्थसिद्धि नामकी टीका रची है। उनका समय विक्रमकी छठी शताब्दी है। डा० पाठकके शिवमृगेश वर्माका भी यही समय है और इसी समयमें वह कुन्दकुन्दका होना बतलाते हैं । किन्तु पूज्यपादने अपनी सर्वार्थसिद्धिमें (२-१० ) में पाँच गाथाएँ 'उक्तं च' करके उद्धृतकी है और वे पांचों गाथाएं जिस क्रमसे उद्धृतकी गई हैं उसी क्रमसे कुन्दकुन्दकी 'वारस अणुवेक्खा में वर्तमान हैं । तथा ये गाथाएँ अन्य किसी प्राचीन ग्रन्थमें नहीं पाई जाती। अतः यह निश्चित है कि पूज्यपादने उन्हें कुन्दकुन्दकी 'वारसअणुवेक्खा'से उद्धृत किया है। इसके सिवाय पूज्यपादके समाधि' तंत्रमें अनेक श्लोक ऐसे हैं जो कुन्दकुन्दकी गाथाओंके ही छाया रूप हैं । इस तरह दोनों ग्रन्थकारोंके ग्रन्थोंके तुलनात्मक अध्ययनसे यह स्पष्ट है कि कुन्दकुन्दके ग्रन्थोंसे पूज्यपाद सुपरिचित थे । अतः कुन्दकुन्द उनसे पहले हो गये हैं यह निश्चित है। कुन्दकुन्दके समयके विषयमें विचार करने वाले शेष चारों विद्वानोंको दो भागोंमें रखा जा सकता है । एक भागमें प्रो० चक्रवर्ती और डा० उपाध्ये आते हैं दूसरेमें श्री नाथूरामजी प्रेमी तथा पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार आते हैं। १. जं मया दिस्सदे रूपं तं ण जाणादि सव्वहा । जाणगं दिस्सदे णं तं तम्हा जंपेमि केणहं ॥२९।।-मो० पा० 'यन्मया दृश्यते रूपं तन्न जानाति सर्वथा । जानन्न दृश्यते रूपं ततः केन ब्रवीम्यहम् ॥१९॥-स० तं० । जो सुत्तो ववहारे सो जोई जग्गए सकजंमि । जो जग्गदि ववहारे सो सुत्तो अप्पणे कज्जे ॥३१॥-मो० पा० व्यवहारे सुषुप्तो यः स जागांत्मगोचरे । जागर्ति व्यवहारेऽस्मिन् सुषुप्तश्चात्मगोचरे ॥७८॥–स० तं x सुहेण भाविदं गाणं दुहे जादे विणस्सदि । तम्हा जहाबलं जोई अप्पा दुक्खेहिं भावए !॥६२॥-मो० पा० अदुःखभावितं ज्ञान क्षीयते दुःखसन्निधौ। तस्माद्यथाबलं दुःखैरात्मानं भावयेन्मुनिः ।।-सं० तं०
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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