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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : ११९ पांचवें मुद्दे पर विचार करते हुए डॉ० उपाध्येने प्रो० चक्रवर्तीके द्वारा जिस ढंगसे कून्दकुन्दको कुरलका कर्ता स्थापित किया गया है उसे प्रसिद्ध कुण्डवदर न्यायकी संज्ञा दी है। फिर भी उन्होंने इस बातको स्वीकार किया है कि कुरलमें बहुतसे ऐसे जैन चिह्न मिलते हैं जिनकी संगति अन्य धर्मोसे नहीं बैठाई जा सकती । तथा जैन ग्रन्थ नीलकेशीका टीकाकार 'कुरल'को अपना पूज्य धर्म ग्रन्थ बतलाता है । आन्तरिक साक्षियोंके साथ ही यह बात सूचित करती है कि काफ़ी सुदीर्घ कालसे जैन लोग कुरलके कर्ताको अपना धर्मानुयायी मानते आने है । ___ जहाँ तक कुन्दकुन्दका प्रश्न है उनका नाम एलाचार्य था, इस विषयमें जो प्रमाण उपस्थित किये गये हैं वे पर्याप्त नहीं है । अतः इसकी पुष्टिके लिए अभी प्रमाणोंकी आवश्यकता है। और यदि यह प्रमाणित हो आता है तो यह स्वीकार किया जा सकता है कि कुन्दकुन्द कुरलके रचयिता हैं और तब उन्हें ईसाकी प्रथम शताब्दीका विद्वान् स्वीकार किया जा सकता है।
अन्तमें डॉ० उपाध्येने जो निष्कर्ष निकाला है वह इस प्रकार है
१. जैन पट्टावलिके अनुसार वह ईस्वी पूर्व प्रथम शताब्दीके उत्तरार्ध और ईसाकी प्रथम शताब्दीके पूर्वार्धमें हुए हैं ।
२ उनसे पूर्व षट्खण्डागमकी रचना हो चुकनेकी संभावना उन्हें दूसरी शताब्दीके मध्यके पश्चात्का बतलाती है ।
३. मकरीके ताम्रपत्रके अनुसार कुन्दकुन्दकी उत्तरावधि ईसाकी तीसरी शताब्दीका मध्य होना चाहिये ।
४. और यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि कुन्दकुन्दका नाम एलाचार्य था और उन्होंने कुरलकी रचनाकी थी तथा वह पल्लवनरेश शिवस्कन्द वर्माके समकालीन थे तो उनके समयकी सीमा ईस्वी सन् की प्रथम दो शताब्दियाँ होनी चाहिए।
प्राप्त सामग्रीकी इस लम्बी छान वीनके पश्चात् मेरा झुकाव इस विश्वासकी ओर है कि कुन्दकुन्दका समय इस्वी सन्का प्रारम्भ है । इस तरह डॉ० उपाध्येने पट्टावली प्रतिपादित समयको ही प्रकारान्तरसे स्वीकार किया है ।
कुन्दकुन्दके समय निर्धारणके जितने भी आधार हो सकते हैं उन सभीकी चर्चा तथा ऊहापोह पूर्व विद्वानोंके द्वारा हो चुका है यह ऊपर दिये गये उनके मतोंसे प्रकट है। जहाँ तक डाक्टर पाठकके मतका प्रश्न है वह तो किसी भी तरहसे मान्य नहीं किया जा सकता क्योंकि कुन्दकुदाचार्य इतने पीछेके आचार्य नहीं है । तोरणाचार्य कुन्दकुन्दके अन्वयके थे अतएव यह नहीं कहा जा सकता कि वे उनके १५० वर्ष पूर्व ही हुए थे। आज भी जो मतिलेख अंकित किये