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११४ : जेनसाहित्यका इतिहास पूर्व ८ मानकर ईस्वी पूर्व ५२ के लगभग उनका जन्म होना माना है। आगे उन्होंने डा० पाठकके मतका विरोध करते हुए पट्टावली प्रतिपादित समयका समर्थन अन्य साधनोंसे किया है। कथाओंमें कुन्दकुन्दको दक्षिण देशका बतलाया है। अतः प्रो० चक्रवर्तीने उसको आधार बनाकर इस बात पर जोर दिया है कि कुन्दकुन्द द्रविण संघके थे। मंत्रलक्षण नामके एक अप्रकाशित ग्रन्थसे उन्होंने एक सूचना प्राप्त की है कि दक्षिणमें मलय नामके देशके अन्तर्गत हेमग्राममें एक एलाचार्य नामके महान् साधु रहते थे वह द्रविण गणाधीश थे। प्रो० चक्रवर्तीका कहना है कि ये सब उल्लेख द्रविण देशमें खोजने पर मिल सकते हैं अतः कुन्दकुन्द द्रविड़ देशके थे और उनका एक नाम एलाचार्य भी था। जैन परम्पराके अनुसार एलाचार्य प्रसिद्ध प्राचीन तमिल ग्रन्थ 'थिरुक्कुरल' के रचयिता थे। उन्होंने इस ग्रंथको रच कर अपने शिष्य तिरुवल्लुअरको दे दिया
और उसने उसे मदुरा संघको भेंट कर दिया। एलालसिंह, जो तिरुवल्लुअरका साहित्यिक संरक्षक माना जाता है, एलाचार्यका दूसरा नाम था । कुरलका जैनधर्मी एलाचार्यके द्वारा रचा जाना अन्य तथ्योंसे भी समुचित प्रतीत होता है । जैसे कुरलका धार्मिक वातावरण, वल्लुवोंके द्वारा अपनाई गई कृषिकी सर्वोत्तम व्यवसायके रूपमें प्रशंसा, जमींदारी प्रथाका समर्थन, जिसने द्रविण देशमें जैन धर्मके प्रारम्भिक अनुयायी उत्पन्न किये ।
प्रो. चक्रवर्तीका कहना है कि एलाचार्य अथवा कुन्दकुन्दको कुरलका रचयिता माननेमें कुरलके सम्भावित कालके साथ भी कोई असंगति नहीं आती, तथा पट्टावली प्रतिपादित समयको उससे बड़ा समर्थन मिलता है। द्रविड़ संघका प्रधान होनेके कारण कुन्दकुन्दने प्राचीन तमिल साहित्यके बल्लालोके लाभके उद्देशसे कुरलको तमिलमें ही रचा होगा, क्योंकि बल्लाल लोग अहिंसा धर्मके कट्टर अनुयायी थे।
उक्त चर्चा के प्रकाशमें प्रो० चक्रवर्तीने शिवकुमार महाराजकी एकरूपता स्थापित करनेका प्रयत्न करते हुए डा० पाठकके उक्त मतको मान्य नहीं किया है। उनका कहना है कि एक तो कुन्दकुन्दके समयसे कदम्ब राजवंशका समय बहुत अर्वाचीन है, दूसरे इस बातका समर्थन करने वाले प्रमाणोंका अभाव है कि कदम्ब प्राकृत भाषासे परिचित थे, जिसमें कुन्दकुन्दने अपने ग्रन्थ रचे हैं । डा० पाठकके मतके विपरीत प्रो० चक्रवर्तीने पल्लव राजवंशके शिवस्कन्दको शिवकुमार महाराज मानने पर जोर दिया है क्योंकि स्कन्द और कुमार शब्द एकार्थवाची हैं अतः शिवस्कन्दका अर्थ होता है शिवकुमार। शिवस्कन्द युवमहाराज भी कहे जाते थे और युवमहाराज तथा कुमार महाराज एकार्थक हैं । अन्य परिस्थितियां भी इस एक रूपताकी पोषक हैं । पल्लवोंकी राजधानी कंजीपुरम् थी।