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________________ द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : ११३ उनमेंसे एक शक सम्वत् ७१९ का है और दूसरा शक सम्वत् ७२४ का है। उनमें कोण्डकोन्दान्वयके तोरणाचार्यके शिष्य पुष्पनन्दीका तथा उसके शिष्य का निर्देश है। इसपरसे डा० पाठकका कहना है कि जब प्रभाचन्द्र शक सम्वत् ७१९ में वर्तमान थे तो उनके दादा गुरु तोरणाचार्य शक सम्वत् ६०० के लगभग हुए होंगे। और चूंकि तोरणाचार्य शक सं० ६०० में हुए थे अतः कुन्दकुन्दको जिनके अन्वयमें तोरणाचार्य हुए थे, १५० वर्ष पूर्व शक सं० ४५० में रखा जा सकता है। डा० पाठकने अपने उक्त अनुमानका समर्थन एक अन्य आधारसे किया है। चालुक्य नरेश कीर्तिवर्मा महाराज शक सम्बत् ५०० में राज्यासन पर विराजमान थे। उन्होंने बादामीको जीता और कदम्ब राज वंश को नष्ट कर दिया । अतः यह निश्चित हुआ कि कदम्ब राज वंशका शिवमृगेश वर्मा लगभग ५० वर्ष पूर्व शक सं० ४५० के लगभग राज्य करता था। पञ्चास्तिकायकी कनड़ी टीकामें बालचन्द्रने और संस्कृत टीकामें जयसेनने लिखा है कि कुन्दकुन्दने यह ग्रन्थ शिवकुमार महाराजके प्रतिबोधनके लिये लिखा था। यह शिवकुमार महाराज कदम्बवंशी शिवमृगेश वर्मा ही प्रतीत होते हैं । अतः शिवमृगेश वर्माके समकालीन होनेके कारण कुन्दकुन्दका समय शक सं० ४५० ( ५२८ ई० ) आता है। प्रो० चक्रवर्तीने डा० हानलेके द्वारा प्रकाशित सरस्वती गच्छकी दिगम्बर पट्टावलीके आधार पर कुन्दकुन्दके आचार्य पद पर आसीन होनेका काल ईस्वी १. 'आसीद तोरणाचार्यः कोण्डकुन्दान्वयोद्भवः । स चैतद्विषये श्रीमान् शाल्मली ग्राममाश्रितः ॥१॥ तस्याभूत पुष्पनन्दी तु शिष्यो विद्वान् गणाग्रणी । तच्छिष्यश्च प्रभाचन्द्रस्तस्येयं वसतिः कृता ॥३॥ २. कोकोन्दोन्वयोदारो गणोऽभूद् भुवनस्तुतः । तदंतद्विषयविख्यातं शाल्मलीग्राममावसन् ॥१॥ आसीद तोरणाचार्यस्तपःफलपरिग्रहः । तत्रोपशमसंभूतभावना पास्तकल्मशः ॥२॥ पण्डितः पुष्पनन्दीति बभूव भुवि विश्रुतः । अन्तेवासी मुनेस्तस्य सकलश्चन्द्रमा इव ॥३॥ प्रतिदिवसभववृद्धिनिरस्तदोषो व्यपेतहृदयमलः । परिभूतचन्द्रविम्वस्तच्छिष्योऽभूत् प्रभाचन्द्रः ॥४॥
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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