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११० : जेनसाहित्यका इतिहास
गिरनार पर्वत पर दिगम्बरों और श्वेताम्बरोंमें विवाद होनेकी चर्चा श्वेताम्बरीय ग्रन्थोंमें भी पाई जाती है । १७वीं शताब्दीमें धर्मसागर उपाध्यायने 'प्रवचन परीक्षा' नामक ग्रन्थ लिखा है। उसमें उन्होंने लिखा है कि एक समय गिरिनार और शत्रुञ्जय तीर्थ पर दोनों सम्प्रदायोंमें झगड़ा हुआ। और उसमें शासन देवताकी कृपामे दिगम्बरोंकी पराजय हुई। रत्न मण्डल गणिकृत सुकृतसागर नामके ग्रन्थके 'पेथड़ तीर्थयात्रा द्वय' नामक प्रवन्धमें भी एक कथा है । श्रीरत्न मन्दिर गणिकृत उपदेश तरंगिणी (पृ. १४८) में भी एक विवादका वर्णन है। उसके अनुसार दिगम्बरोंसे श्वेताम्बरोंका विवाद एक महीने तक हुआ। अन्तमें अम्बिकाने 'उज्जितसेल सिहरे' आदि गाथा कहकर विवादकी समाप्ति कर दी । उसमें कहा है जो स्त्रियोंकी मुक्ति मानता है वही सच्चा जैन मार्ग है और उसीका यह तीर्थ है। ____ इस तरह दिगम्बर और श्वेताम्बरोंमें गिरनार पर्वतपर विवाद तो अवश्य हुआ प्रतीत होता है । किन्तु वह कुन्दकुन्द स्वामीके समयमें नहीं हुआ। बल्कि पद्मनन्दि नामके एक भट्टारकके समयमें हुआ है । और चूंकि कुन्दकुन्दका भी नाम पद्मनन्दि था और वे दिगम्बर परम्पराके एक प्रभावक प्रधान आचार्य थे अतः उनके नामके साथ उक्त विवाद जुड़ गया है।
सरस्वतीगच्छकी दिगम्बर पट्टावलीमें लिखा है'संवत् १३७५ दिन सुं भट्टार्क प्रभाचन्दजीके आचार्य छो। सो गुजरातमें श्री भट्टार्कजी तो न छा अरु वै आचार्य ही छा। सो महाजन एक प्रतिष्ठा को उद्यम कियो। सो वै तो न आय पहुच्या । जदि आचार्यने सूरिमंत्र दिवाय अर भट्टार्क पदवी गुजरातकी दीन्ही प्रतिष्ठा करिवा पांछ । तहा सूं गुजरातमें पट्ट धारो। आचार्य सुं भट्टार्क हुओ । नाम पद्मनन्दीजी दियौं।
इसी गच्छकी दूसरी पट्टावलीमें यह नोट दिया है
'प्रभाचन्द्रजी के आचार्य गुजरातमें छो। सो बढ़ एकै श्रावक प्रतिष्ठा नैं प्रभाचन्द्रजीन बुलायां । सो वै नाया। तदि आचार्य नै सुरमंत्र दे भट्टारक करि प्रतिष्ठा कराई तदि भट्टारक पद्मनन्दिजी हुआ । त्यां पाषाणकी सरस्वती मुटैं बुलाई।'
इसी पट्टावलीसे दो श्लोक पीछ उद्धृत किये गये हैं जिनमें पद्मनन्दिको बलात्कारगणका अग्रणी बतलाया है और लिखा है कि उर्जयन्त गिरि पर उन्होंने पाषाणकी सरस्वतीको बाचाल कर दिया ।
१. जै० सा० इ०, पृ० ४६८ पर 'तीर्थोके विवाद' शीर्षक लेख ।