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द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १०९ स्पर्शके प्रभावसे लोहा सोना हो गया था' 'राजबलि कथे' में देवचन्द ( १७७०१८४१ ई० ) ने भी पूज्यपादके सम्बन्में लिखा है कि अपने पैरोंमें औषषि लगाकर उसके प्रभावसे विदेह क्षेत्र गये थे। किन्तु कुन्दकुन्दने इस सम्बन्धमें कुछ भी नहीं लिखा। वे तो अपनेको मात्र श्रुतकेवली भद्रबाहुका ऋणी बतलाते हैं। गिरनार पर्वत पर श्वे०दि० विवाद
शुभचन्द्राचार्यने ( १५१६-५६ ई० ) अपने पाण्डवपुराणमें कुन्दकुन्दका स्मरण इस प्रकार किया है।
कुन्दकुन्दगणी येनोज्जयन्तगिरिमस्तके ।
सोऽवताद् वादिता ब्राह्मी पाषाणघटिता कलौ ॥१४॥ 'वे कुन्दकुन्दगणी रक्षा करें, जिन्होंने कलिकालमें उर्जयन्तगिरिके मस्तक पर अर्थात् गिरनार पर्वतके ऊपर पाषाण निर्मित ब्राह्मीकी मूर्तिको बुलवा दिया।' शुभचन्द्राचार्यकी गुर्वावली' के अन्तमें दो श्लोक इस प्रकार है
पद्मनन्दी गुरुर्जातो बलात्कार-गणाग्रणी। पाषाण-घटिता येन वादिता श्रीसरस्वती ॥ उजयन्तगिरी तेन गच्छः सारस्वतोऽभवत् ।
अतस्तस्मै मुनीन्द्राय नमः श्रीपद्मनन्दिने ॥६३॥ 'बलात्कारगणके अग्रणी पद्मनन्दि गुरु हुए, जिन्होंने उर्जयन्तगिरि पर पाषाण निर्मित सरस्वतीकी मूर्तिको वाचाल कर दिया। उससे सारस्वत गच्छ हुआ । अतः उन पद्मनंदी मुनीन्द्रको नमस्कार हो।' । ___कविवर वृन्दावन ने भी उक्त घटनाका उल्लेख एक छन्दके द्वारा किया
'संघ सहित श्री कुन्दकुन्द गुरु वन्दन हेत गए गिरनार । वाद परयौ तह संशयमतिसों साखी वदी अंबिकाकार ॥' 'सत्यपन्थ निग्रंथ दिगम्बर कही सुरी तहं प्रगट पुकार,
सो गुरुदेव वसौ उर मेरे विधनहरन मंगलकरतार ॥ इसमें बतलाया है कि एक बार कुन्दकुन्द स्वामी संघसहित वन्दनाके लिए गिरनार पर्वत पर गये। वहाँ श्वेताम्बरोंसे उनका विवाद हो गया। दोनोंने पर्वत पर स्थित अम्बिकाकी मूर्तिको मध्यस्थ माना । देवीने प्रकट होकर कहा कि दिगम्बर निग्रंथपन्थ ही सच्चा है । १. जै० सि० भा०, भा० १, कि० ४, पृ० ५८ ।