________________
द्रव्यानुयोग (अध्यात्म) विषयक मूलसाहित्य : १०३ यह बात कही है कि कुन्दकुन्द जब विदेह गये तो मार्गमें मयूरपिच्छ गिर जानेसे उन्होंने गृद्धपिच्छका व्यवहार किया। साधारणतया दि० जैन मुनि मयूरपिच्छका ही व्यवहार करते हैं। गृद्धपिच्छका व्यवहार विशेष अवस्थामें ही किया जाना सम्भव है और इसीसे जिसने मयूरपिच्छकी जगह गृद्धपिच्छका व्यवहार किया हो वह गृद्धपिच्छाचार्यके नामसे ख्यात हो सकता है। किन्तु पर्याप्त प्रमाणोंके अभावमें इस विषयमें कुछ निश्चय पूर्वक कहना संभव नहीं है ।
उक्त विवेचनसे पद्मनन्दि और कुन्दकुन्दके सिवाय शेष तीनों नामोंके सम्बन्धमें कोई प्रमाणित आधार नहीं मिलता। अतः उन नामोंकी स्थिति चिन्त्य है। जन्मस्थान
इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमें लिखा है कि द्विविध सिद्धान्तको कौण्डकुन्दपुरमें पद्मनन्दि मुनिने जाना । चूंकि पद्मनन्दिका अपरनाम कुन्दकुन्द या कौण्डकुन्द था, इस पर से वे कोण्डकुन्द पुरके जान पड़ते है और उसीके कारण वह अपने गाँवके नाम परसे कुन्दकुन्द नामसे ख्यात हुए हैं । दक्षिण-भारतमें व्यक्तिके नामके पहले गाँवका नाम लिखनेकी प्रथा आज भी प्रचलित है। जैसे प्रसिद्ध भारतीय दार्शनिक और भारतके उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन्के नामके पहले सर्वपल्ली उनके गाँवका ही बोधक है। अतः कोण्डकुण्ड पद्मनन्दि कर्णकटु कोण्डकुण्डके श्रुतिमधुर रूप कुन्दकुन्द नामसे ख्यात हुए। किन्तु यह कौण्डकुण्ड स्थान दक्षिण-भारतमें किस स्थान पर था यह अनिर्णीत है ।
श्री पी०बी० देसाईने अपनी 'जैनिज्म 'इन साउथ इण्डिया' पुस्तकमें एक 'कोनकोण्डल' नामक स्थानका विवरण दिया है । गुण्टकल रेलवे स्टेशनसे दक्षिणकी ओर चार मील पर एक कोनकोण्डल नामक गाँव है जो अनन्तपुर जिलेके गूटी (Gooty) ताल्लुकेमें स्थित है। इसे कोनकुण्डल भी कहते हैं । श्री देसाई स्वयं इस स्थानको देखने गये थे और वह इसकी प्राचीनतासे बहुत प्रभावित हए । प्राचीन शिलालेखोंसे, जो वहाँसे प्राप्त हुए हैं प्रकट होता है कि इस स्थानका प्राचीन नाम 'कोण्डकुण्ड' था। आज भी यहाँके अधसभ्य अधिवासी इसे 'कोण्डकुण्डी कहते हैं ।
श्री देसाईने लिखा है कि 'कुण्ड' कन्नड़ शब्द है इसका अर्थ पहाड़ी होता है किन्तु जब यह किसी स्थानके लिए प्रयुक्त होता है तो इसका अर्थ होता है'पर्वतीय आवास'। कन्नड़में 'कोण्ड' का अर्थ भी 'पहाड़ी' होता है। अतः
१. जीवराज जैन ग्रन्थमाला शोलापुरसे प्रकाशित ।