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भूगोल-खगोल विषयक साहित्य : ९१ है । मुख्तार साहबने लिखा है कि इस ग्रन्थमें भाषाके परिवर्तन और दूसरे ग्रन्थों से कुछ पद्योंके 'उक्तंच' रूपसे उद्धरणके सिवाय सिंहसूरकी प्रायः और कुछ भी कृति नहीं मालूम होती। बहुत सम्भव है कि 'उक्तं च' रूपसे जो यह पद्योंका संग्रह पाया जाता है वह स्वयं सिंहसूर मुनिके द्वारा न किया गया हो, बल्कि बादको किसी दूसरे ही विद्वानके द्वारा अपने तथा दूसरोंके विशेष उपयोगके लिये किया गया हो; क्योंकि ऋषि सिंहसूर जब एक प्राकृत ग्रन्थका संस्कृतमेंमात्र भाषाके परिवर्तन रूपसे ही अनुवाद करने बैठे-व्याख्यान नहीं, तब उनके लिये यह संभावना बहुत ही कम जान पड़ती है कि वे दूसरे प्राकृत ग्रन्थों परसे तुलनाके लिये कुछ वाक्योंको स्वयं उद्धृत करके उन्हें ग्रन्थका अंग बनाएं। यदि किसी तरह उन्हींके द्वारा यह उद्धरण कार्य सिद्ध किया जा सके तो कहना होगा कि वे विक्रमकी ११वीं शताब्दीके अन्तमें अथवा उसके बाद हुए हैं क्योंकि इसमें आचार्य नेमिचन्द्रके त्रिलोकसारकी भी गाथाएं 'उक्तं च त्रैलोक्यसारे' जैसे वाक्यके साथ उद्धृत पाई जाती हैं।'
_ 'उक्तं चार्षे' 'उक्तं च त्रैलोक्यसारे' जैसे वाक्योंके साथ पद्योंका उद्धरण जिस तरह यथास्थान पाया जाता है, उससे यह कार्य सिंहसूरका ही प्रतीत होता है जो उनके करणानुयोग विषयक बहुश्रु तत्वका तथा संग्रहप्रेमका ही परिचायक है। अतः त्रिलोकसार और जम्बूद्वीपपण्णतिके पश्चात् ही इस ग्रन्थका निर्माण होना बहुत अधिक सम्भव है। सिंहसूरके साथ प्रयुक्त ऋषि विशेषणसे भी उसीका समर्थन होता है।
इस विषयमें श्री नाथूराम जी प्रेमीकी संभावना अधिक उचित प्रतीत होती है। प्रेमीजीने लिखा है-'पिछले भट्टारक शायद अपनी मठाधीश महन्तों जैसी रहन-सहनके कारण अपनेको मुनिके बदले ऋषि लिखना पसन्द करने लगे थे। दान शासन नामका ग्रन्थ वि० सं० १४७८ का बना हुआ है। उसकी अन्त प्रशस्तिमें वाक्य है-'श्री वासुपूज्यषिणा प्रोक्तं पावन दानशासनमिदं' । अर्थात् वासुपूज्य ऋषिका कहा हुआ यह पवित्र दान शासन । इसी तरह श्रुतसागरने अपना यशोधरचरित जिन भट्टारकोंकी प्रेरणासे लिखा है उनमेंसे भट्टारक रत्नराजको भी ऋषि लिखा है। गरज यह कि सिंहसूरके साथ जो 'ऋषि' लगा हुमा है वह यही बतलाता है कि वे भट्टारक थे' ।
किन्तु श्री प्रेमीजीने जो सिंहसूरको संक्षिप्त नाम वतलाकर पूरा नाम सिंहनन्दि या सिंहकीर्ति होनेकी संभावना की है वह उचित नहीं मालूम होती । "सिंहसूर' नाम अपने आपमें पूरा प्रतीत होता है । यद्यपि सिंहसूर नामके किसी भट्टारकका कोई उल्लेख नहीं मिलता जब कि सिंह नन्दि और सिंह कीर्ति