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________________ ९० : जेनसाहित्यका इतिहास निर्देश करके भवनवासी देवोंके भवनोंकी संख्या, जिन भवन, इन्द्रोंके नाम, उनके भवन, परिवार, आयु, उच्छ्वास तथा आहारका प्रमाण वगैरहका कथन है । ८. आठवें अधोलोक विभागमें रत्न प्रभा आदि सात पथिवियोंका बाहुल्य, पृथिवियोंमें प्रस्तारोंकी संख्या, श्रेणी बद्ध और प्रकीर्णक बिलोंकी संख्या, उनका विस्तार, अन्तर, प्रथम श्रेणीवद्ध विलोंके नाम, नारकियोंके शरीरकी ऊँचाई, आयु, आहार, अवधि ज्ञानका विषय, वेदना, जन्म मरणका अन्तर, गति-आगति, विक्रिया आदिका कथन है । ९. नौवें व्यन्तर लोक विभागमें पहले व्यन्तरोंके तीन भेद बतलाये हैंऔपपातिक, अध्युषित, और आभियोग्य । फिर व्यन्तरोंके तीन प्रकारके निवास स्थान बतलाये हैं भवन, आवास और भवनपुर । फिर व्यन्तरोंके आठ भेदोंको बतलाकर प्रत्येकके अवान्तर भेद, इन्द्र, आयु परिवार आदिका कथन किया है । १०. दसवें ऊर्ध्व लोक विभागमें सबसे प्रथम भावन, व्यन्तर, नीचोपपात्तिक, दिग्वासी, अन्तरवासी, कूष्माण्ड, उत्पन्नक, अनुत्पन्नक, प्रमाणक, गन्धिक, महागन्ध, भुजग, प्रीतिक, आकाशोत्पन्न, ज्योतिषी, वैमानिक और सिद्धोंकी क्रम से ऊपर-ऊपर स्थिति बतलाकर उनकी आयुका कथन किया है। पश्चात् १२ कल्पोंका व कल्पातीतोंका कथन करके प्रत्येक कल्पके इन्द्रक और श्रेणीबद्ध विमानोंका तथा १६ कल्पोंके मतानुसार विमानोंकी संख्या, बाहुल्य, वर्ण, देवोंमें प्रवीचार, शरीरकी ऊंचाई, लेश्या, विक्रिया आदिका और लौकान्तिक देवोंका कथन किया है। ११. ग्यारहवें मोक्ष विभागमें आठवीं पृथिवीका विस्तार आदि बतला कर सिद्धोंकी अवगाहनाका कथन किया है । फिर सिद्धों का स्वरूप बतलाया है। ___ लोक विभागके अन्तमें ग्रन्थका परिमाण अनुष्टुप श्लोकोंमें १५२६ बतलाया है। परन्तु उपलब्ध लोक विभागमें २२३० श्लोक हैं। अर्थात् ७०४ श्लोक अधिक हैं। श्री जुगुलकिशोरजी मुख्तार के लेखानुसार इस ग्रन्थमें १०० से अधिक गाथाएँ तो तिलोयपण्णत्ति की है, २०० से अधिक श्लोक भगवज्जिनसेनाचार्यके आदिपुराणसे लिये गये हैं। शेष पद्य त्रिलोकसार, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदिसे उद्धृत किये गये हैं। रचयिताका समय इस ग्रन्थके रचयिताने अपना नाम सिंहसूर ऋषि बतलाया है। अपने गुर्वादिके सम्बन्धमें तथा रचनाकालके सम्बन्धमें उन्होंने कुछ भी नहीं लिखा १. पु० वा० सू०, प्रस्ता०, पृ० ३२-३३ ।
SR No.010295
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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