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भूगोल - खगोल विषयक साहित्य : ८९ नामोल्लेख करके राजुके अर्धच्छेदोंके पतनका तथा द्वीप समुद्रोंके अधिपति व्यन्तर देवोंके नामोंका कथन किया है । पश्चात् नन्दीश्वर द्वीपके विस्तार, परिधि उसमें स्थित अंजनगिरि, दधिमुख, और रतिकर पर्वतोंका तथा इन्द्रोंके द्वारा किये जाने वाले जिनपूजा विधानका कथन है । आगे अरुणवर द्वीप और अरुणवर समुद्रका निर्देश करके कुण्डलद्वीपमें स्थित कुण्डल गिरि तथा रुचकवर द्वीपमें स्थित रुचक पर्वत पर स्थित कूटों और उनपर बसने वाली दिक्कुमारिकाओंके कार्योंका कथन है ।
५. पांचवें काल विभागमें उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालोंके सुषम सुषमादि विभागोंका, अवसर्पिणीके प्रथम तीन कालोंमें होने वाले मनुष्योंकी आयु शरीरोत्सेध आदिका, दश प्रकारके कल्पवृक्षोंका, कर्म भूमिके प्रारम्भमें उत्पन्न होने वाले कुलकरोंके कार्योंका तथा भोगभूमिका अन्त व कर्मभूमि के प्रवेशका, तीर्थङ्करों की उत्पत्तिका, पांचवें और छठे कालकी विशेषताओंका व अवसर्पिणी कालके अन्त और उत्सर्पिणी कालके प्रवेशका कथन है ।
इस प्रकरणमें ग्रन्थकारने आदि पुराणके श्लोकोंका खूब उपयोग किया है । प्रारम्भमें लगभग ४०–४५ श्लोकोंके पश्चात् 'उक्तं चार्षे' कहकर तीसरे कालके अन्तमें उत्पन्न होने वाले प्रतिश्र ुति आदि कुलकरोंका वर्णन करते हुए जो श्लोक दिये गये हैं, वे आदि पुराणके तीसरे पर्व में वर्तमान हैं ।
यहाँ १४ कुलकरोंकी आयुका प्रमाण क्रमसे पल्यका दसवां भाग, अमम, अटट, त्रुटित, कमल, नलिन, पद्म, पद्मांग, कुमुद, कुमुदांग, नयुत, नयुतांग, पूर्व और पूर्वकोटि बतलाया है । तिलोय पण्णत्ति ( ४, ५०२ - ५०३ गा० ) में इस मतका उल्लेख ‘केई’ करके किया गया है ।
भोगभूमिजोंकी यौवन प्राप्तिमें यहाँ २१ दिनका काल प्रमाण बतलाया है परन्तु तिलोयपण्णत्ति में ( ४, ३७९ - ३८०, ३९९ - ४००, ४०७ ) उत्तम, मध्यम और जघन्य भोगभूमियोंके अनुसार योवन प्राप्तिका काल क्रमसे, २१ दिन, ३५ दिन और ४९ दिन बतलाया है ।
६. छठे ज्योतिर्लोक विभागमें ज्योतिषी देवोंके भेद, उनका निवास स्थान, विमानोंका विस्तार, संचारक्रम, जम्बूद्वीपादिमें चन्द्र संख्या, मेरुसे सूर्य और चन्द्रका अन्तर प्रमाण, चन्द्र और सूर्योकी मुहूर्तगति दिन रात्रिका प्रमाण, ताप तमकी परिधियां, चार क्षेत्र, अधिक मास, दक्षिण-उत्तर अयन, विषुप, चन्द्रकी हानि वृद्धि, ग्रहादिका आकार, कृत्तिकादि नक्षत्रोंका संचार, सूर्यका उदय व अस्त, ताराओंका प्रमाण, चन्द्र आदिकी आयु तथा देवियोंकी संख्या आदिका कथन है ।
७. सातवें भवनवासिलोक विभागमें प्रथम रत्नप्रभा पृथिवीके विभागोंका