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४६ जनगाहित्यनानिहाग
न्मानित भी गर्म निगागणग्यान, जीगगाग आरियाग प्रा. गुगोपी गत्प्रागणागे गुन, जीपानी मारी रमना पापन्तनं ।। गिन्तु गाव नीगनिया' ग भिनाग rareणा गन्प्रापणा न गाहार उगे 'गदिगुत्त' सम्म गयो अति निया, यह पाटनी |
लोण गमारी जानी नगर गोग्गेमामीन उनी प्रणा गरने प्रतिमा मान्ने प्रणा!! sifrगा:-गामाग और विशेगी अपेक्षा गणम्पानी, गोनगमाग, पर्यानि, प्राण, मा, गा, गि, Tय, मांग, वैद, गापाग, शान. गगग, गंन, गा, गणप, भगव्यान, गम्यान, गभी, अगी जातागजमा मार गयांग नग पर्मान गोर अपात्र पितान ITag जीपणा reणा ।'
गगनीराम गा गाला मान , निगमे गा गया fir-'गणन. जोगमाग, पांग, पान, गना, Tोर मार्गणाग और उपगोग ग प्रार कामे नोग प्रापणा ।'
आगे भलादी गागागा गा गीग मागी प्राण गो ग हो गई। गानी रगरगामीने गर वीर निगा है कि गह गा-निपाति। गाम निप्राग गानाशार्ग प्रणीला गात्रपणा मागेही जाग नगिनोम बोग प्रगानी गमन है, गलिग उन्हें बीदिमुन' कता जान पता। न्नुि पाराग्ने भन्न
पान गमाप्त करने परनान निगा fr-गमगोगा गिरण समाप्त हो जाने अगर उनी प्राणा रहेंगे। मगे स्पष्ट है कि नानागं गुणनो गन्मयोगी रमनाशी है. उगते पम्पमा मन नहीं गया । गगि उन्होने अनुपांगताग्गा नाम 'मतपम्वणा' ही रगा, ऐगी स्थितिम पुगपदन्तानायी ग ग्नं गगे गोको 'मनमुत्त' काहना उचित हो जाता था। किन्तु यह न सार 'योगदिगुत' ही पयो पता गया, इस गम्बन्धमे विशेष गन्तापजनक समाधान नहीं गिरना।
इन्द्रनन्दिने लिगा है fr पुष्पदन्नने गौ मुगोगो पटाकर, जिनपान्तिको १. 'पाच्या गाजीपातिविधिमाFMITI पुर समानाधिकार
व्यरचयत् मन्या । २५||~मुता 'मपरि मनमुत्तविवरणमगताणतर तमि परूषण मणिग्मामी। परपणा याम किं उस
होति ।-पट०, पु. २, प. ४११ । ३ पट्य० पु २, पृ ४.३ । ४. पटग पु २, पृ. ४१ । ५ 'रात्राणि तानि शनमध्याप्य तनो भूतबलिगुरो पावम् । तदभिप्राय शातु प्रस्थापयद
गमदेपोऽपि ॥१३६॥'-श्रुता०
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