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छक्खडागम ४७
भूतबलि के पास भेजा । किन्तु सत्प्ररूपणा के सूत्रो की संख्या १७७ है । अत उनका यह कथन भी स्खलित प्रतीत होता है । इस प्रकार की कतिपय विप्रतिपत्ति योके रहते हुए भी धवलासे तो यही प्रमाणित होता है कि सत्प्ररूपाणके सूत्र पुष्पदन्ताचार्यने रचे थे, क्योकि उनकी उत्थानिकाभमें धवलाकारने पुष्पदन्तका ही नामोल्लेख किया है । द्रव्यप्रमाणानुगम अनुयोगद्वार के प्रथम सूत्रको उत्थानिकामें भूतवलिका नाम निर्देश किया है । अत द्रव्यप्रमाणानुगमसे लेकर भूतबलि आचार्यकी रचना आरंभ होती है ।
रूपरेखाका निर्माण
इस ग्रन्थकी रूपरेखाका निर्माण भूतबलि और पुष्पदन्तमेंसे किमने किया ? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है । यह तो स्पष्ट ही है कि ग्रन्थके निर्माणका आरम्भ आचार्य पुष्पदन्तने किया । उन्होने चौदह जोवसमासोके गुणस्थानोके ) निरूपणके लिए आठ अनुयोगद्वारोको ही जानने योग्य बताया है । वे आठ अनुयोगद्वार है— सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम । जीवस्थाननामक प्रथम खडके ये ही आठ अधिकार है । इन अधिकारोके पश्चात् जीवस्थानकी चूलिका है, इस चूलिकाके अन्तर्गत अधिकारोका कोई निर्देश 'जीवट्ठाण' के उक्त आठ अनुयोगद्वारोमें नही पाया जाता । अत चूलिका अधिकारको भी जीवस्थानका ही भाग सिद्ध करनेके लिए, चूलिकाके आरम्भ में ही धवलाकारको शङ्का-समाधान करना पडा है, जो इस प्रकार है
शङ्का - आठो अनुयोगद्वारोके समाप्त हो जानेपर यह चूलिका नामक अधिकार किसलिए आया है ?
समाधान --- पूर्वोक्त आठ अनुयोगद्वारोके नियम- स्थलोका विवरण करने के लिए आया है ।
शङ्का - चूलिका अधिकार आठ अनुयोगद्वारोसे प्ररूपित अर्थका ही कथन करता है अथवा अन्य अर्थका । यदि उसी अर्थ का कथन करता है
१ सपाहिं चोद्दसह जीवसमासाणमत्थित्तमवगदाण सिरसाण तेमि चेव परिमाण पडिवोहणट्ठ भूद्रवलियार्शरओ सुत्तमाह । पट्स, पु. ३, पृ० १ ।
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२ एदेसिं चेव चोद्दसह जीवसमासाण परूवण ट्ठदाए तत्थ इमाणि अट्ठ अणियोगद्दाराणि णायव्वाणि भवति ||५|| त जहा ||६|| सतपरूवणा दव्वपमाणाणुगमो, खेत्ताणुगमो फोस नागमो कालानुगमो, अतराणुगमो, भावाणुगमो, अप्पाबहुगाणुगमो चेदि ||७|| षट्ख पु, १, पृ १९३१५५ ।
३ षट्ख पु ६, पृ १२ ।