________________
४४ जैनसाहित्यका इतिहास इस 'टिप्पणिका' ग्रन्थकी एक प्रति भाण्डारकर ओरियटल रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूनामें उपलब्ध है। इस प्रतिमे ग्रन्थका नाम तो 'योनिप्राभृत' ही बताया है। पर रचयिताका' नाम 'पण्णसमण' मुनि लिखा है। इन महामुनिने कुपमाण्डिनी देवीसे इसे प्राप्त किया था और अपने शिष्य पुष्पदन्त एव भूतबलिके लिए लिखा था।
इस कथनसे योनिप्राभृतके रचयिता धरसेनकी सभावना की जाती है । प्रज्ञाश्रमणत्व एक ऋद्धि है । सम्भवत धरसेनाचार्य इस ऋद्धिके धारी रहे हो । इसी कारण उन्हे प्रज्ञाश्रमण कहा जाता रहा हो।
यहाँ यह स्मरणीय है कि इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमें गुणधरके समान धरसेनाचार्यको गुरुपरम्परा अकित नही की है और न ऐसा स्रोत ही उपलब्ध है, जिसके आधारपर धरसेनाचार्यकी गुरुपरम्परापर विचार किया जा सके । पर हाँ, पुष्पदन्त और भूतबलि ये दो इनके शिष्य है। उनके सम्बन्धमें पहले लिखा जा चुका है । पट्टावलीसे केवल इतना ही ज्ञात होता है कि धरसेनका समय वीर निर्वाण सवत् ६१४-६८३ के बीच होना चाहिए । अत. छक्खडागमका रचनाकाल विक्रम सवत्की प्रथम शताब्दीका अन्तिम पाद और द्वितीय शताब्दीका प्रथम पाद होना चाहिए।
रचनास्थान ___ 'धरसेनाचार्यने गिरिनगरकी चन्द्रगुफामे निवास करते हुए पुष्पदन्त और भूतवलिको महाकर्मप्रकृतिप्राभृतका अध्ययन कराया था। यह नगर सौराष्ट्रमें गिरिनारके नामसे प्रसिद्ध है। ___ पुष्पदन्त और भूतबलिने गिरिनारसे लौटकर अकुलेश्वरमे वर्षावास किया । सम्भवत गुजरातका भडोच जिलेका अकलेश्वर ही अकुलेश्वर रहा होगा। इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमें बताया है कि धरसेनाचार्यने उन्हें कुरीश्वरपत्तन भेजा था, जहाँ वे नौ दिनमें पहुंचे थे । विवुध श्रीधरने भी अकुलेश्वरमे वर्षावास करनेका उल्लेख किया है । अत कुरीश्वर अंकुलेश्वरका ही भ्रष्ट रूप प्रतीत होता है।
वर्षायोग समासकर पुष्पदन्ताचार्य जिनपालितको देखकर और उसे साथ ले वनवास देशको चले गये और भूतवलिने द्रमिल (द्रविड) देशको प्रस्थान किया
१ 'इय पण्हसवण रडए भूयवली-पुप्फट तआलिहिए । कुसुमडीउवहठे विज्जयविपम्मि
अवियारे । अनेका०, वर्ष २, पृ० ४८७ । २. 'मोरट्ठविसयगिरिणयरपट्टणच दगुहाठिएण दक्षिणावहाइरियाण महिमाए मिलियाण
लेहो पेमिटो।'–पटसटागम, पु. १, पृ० ६७ ।