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द्वितीय परिच्छेद
छक्खडागम (पट्खण्डागम) दिगम्बर परम्पराका दूसरा महनीय ग्रन्थ छक्खडागम है । इस ग्रन्थको विषयवस्तु केवल जैन साहित्यकी दृष्टिसे ही नहीं, अपितु समस्त भारतीय वाड्मयके इतिहासकी दृष्टिसे महत्वपूर्ण है । जीवकी स्वतत्रता और उसके कर्मसम्बन्धका सूक्ष्म विवेचन धर्म, दर्शन एव सस्कृतिको दृष्टिसे नितान्त श्लाघनीय है । यह केवल ग्रन्थ ही नहीं, अपितु वाड्मय कोप है। अतएव वाड्मयके इतिहासके विवेचन-सन्दर्भमें इस ग्रन्थकी विपय-वस्तु, रचना-काल, रचयिता, रचना-स्थान आदिपर विचार करना परमावश्यक है। छक्खडागमका रचनाकाल
इस ग्रन्थके रचनाकालके सम्बन्धमें विचार करनेके हेतु ग्रन्थावतारका इतिवृत्त अकित किया जा चुका है । बताया है कि यह ग्रन्थ उस समय रचा गया था, जब अङ्गो और पूर्वोका ज्ञान प्राय लुप्त हो चुका था और विशकलित अशज्ञानके भी लुप्त होनेका भय उपस्थित हो गया था। अतएव धरसेनाचार्यने पुष्पदन्त और भूतबलि नामक दो मुनियोको महाकर्मप्रकृतिप्राभृतका अध्ययन कराया। गुरुद्वारा प्राप्त अपने ज्ञानके आधारपर ही उक्त दोनो आचार्योने छक्खण्डागमकी रचना की।' ___ नन्दिसघकी पट्टावलिके अनुसार आचार्य धरसेनका समय वीर-निर्वाणसे ६१४ वर्ष पश्चात् आता है । धरसेनाचार्यकृत 'जोणिपाहुड' (योनिप्राभृत) ग्रन्थ उपलब्ध होता है । विक्रम संवत् १५५६ में लिखी गयी 'बृहटिप्पणिका' नामकी सूचीके आधारपर उसे वीरनिर्वापसे ६०० वर्प पश्चात्का रचा हुआ माना गया है ।
, लोहाइरिये सग्गलोग गदे आयारदिवायरो अत्यमिओ। एव वारासु दिणयरेसु भरह
खेत्तमि अत्यमिएसु सेसाइरिया सन्वेसिमगपुन्वाणमेगदेमभूदपेज्जदोसमहाकम्पयडि पाहुडादीण धारया जादा । एव पमाणीभूदमहरिसीपणालेण आगतूण महाकम्मपडि. पाहुडामियजलपवाहो परसेणभडारय सपत्तो। तेण वि गिरिणयरचदगुहाए भदलि पुप्फदताण महाकम्मपयडिपाहुड मयल समापिद । तदो भदवलिभडारएण सुदणईपवाहवोच्छेदमीण भवियलोगाणुग्गहठ्ठ महाकम्मपयडिपाहुडमुवसहरिऊण छक्खडाणि
कयाणि ।'-पटख०, पु० ९, पृ० १३३ । २. पटख, पु. १ की प्रस्ता० पृ०, ०५-०९।। ३ 'योनिमाभत वीरात ६०० धारसेनम् ।'-जै. सा स. १, २, परिशिष्ट ।