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हमने व्यवस्थित रूप देनेका प्रयास ही नही किया, आर्थिक सहयोगमें भी प्रयत्न किया है । बा० नन्दलालजी सरावगी कलकत्ता और उनकी प्रेरणासे तेयार कुछ दाताओने भी इन भागोके प्रकाशनमे महत्त्वपूर्ण आर्थिक दान दिया । सुहहर प० खुशालचन्द्रजी गोरावालाकी प्रेरणाको भी हम नही भुला सकते, जिन्होने भी इनके प्रकाशनमे हाथ बटाया है । अभी इन दोनो भागोकी छपाई - चाईडिंग, कागज आदिमें हमे लगभग छ हजार रुपएकी आवश्यकता है । आशा है हमारे उपर्युक्त सहयोगी तथा अन्य उदार दानी हमें उक्त छोटी-सी राशि प्राप्त करानेमें पूरापूरा सहकार करेगे ।
हम श्रद्धेय पण्डित कैलाशचन्द्रजी शास्त्री सिद्धान्ताचार्यके वहुत आभारी है, जिन्होंने ये दोनों भाग १३ वर्ष पूर्व लिखकर ग्रन्थमालाको दे दिये थे और अव तक धैर्य पूर्वक उनके प्रकाशनकी प्रतीक्षा की । किन्तु हम सकारण विवश थे इससे पूर्व छापने में । फिर उनसे क्षमा-प्रार्थी हूँ । हर कार्यकी काल-लब्धि होती है, तभी वह सम्पन्न होता है । पिछले दो वर्षोकी एक लम्बी कहानी है, जिसे हम यहाँ छोड रहे है ।
हमें इतनी ही प्रसन्नता है कि वर्द्धमान मुद्रणालय की प्रतीक्षित सलग्नतासे अव दोनों भाग दिसम्बर १९७५ तक प्रकाशमें आ जायेंगे और सरक्षक सदस्योको दिये आश्वासनकी पूर्ति हो सकेगी ।
जय महावीर ।
भ० महावीरकी २५००वी, निर्वाण-शताब्दी ३ नवम्बर १९७५
( डॉ० ) दरबारीलाल कोठिया मत्री, श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैन ग्रन्थमाला,