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________________ ४२४ · जैनसाहित्यका इतिहास रूप है। अब हम भावसग्रहसे कुछ ऐसी गाथाएं उद्धृत करते है जो पचसग्रहमें नही है किन्तु जीवकाण्डमें ज्योकी त्यो या कुछ अन्तरको लिये हुए मिलती है एए तिण्णि वि भावा दसणमोह पडुच्च भणिआ हु । चारित्त णत्थि जदो अविरयअतेसु ठाणेसु ॥२६०॥ यह गाथा जीवकाण्डमें इसी रूपमें वर्तमान है इसका नम्वर वहाँ १२ है । तेसि यि समयाण सखारहियाण आवली होई । सखेज्जावलिगुणिमओ उस्सासा होई जिणदिट्ठो ॥३१२॥ सत्तुस्सासे थोओ सत्तथोएहिं होइ लओ इक्को । अट्ठत्तीसद्धलवा णाली वेणालिया मुहुत्त तु ॥३१३।। जीवकाण्डमें इन गाथाओका रूप इस प्रकार है आवलि असखसमया सखेज्जावलिसमूहमुस्सासो। सत्तुसासा थोवो सत्तत्थोवा लवो भणियो ॥५७३॥ अट्टत्तीसद्धलवा नाली वे नालिया मुहुत्त तु । एग समएण हीण भिण्णमुहुत्त तदो सेस ।।५७४॥ जीवकाण्डमें एक गाथा इस प्रकार है एदे भावा णियमा दसणमोह पडुच्चभण्णिदाहु । चारित्त णत्थि जदो अविरदअन्तेसु ठाणेसु ॥१२॥ पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे गुणस्थानमें भावोका कथन करके यह गाथा कही गयी है । इसमें वतलाया है कि ये भाव दर्शनमोहनीयकी अपेक्षासे कहे गये है क्योकि अविरत गुणस्थान पन्त चारित्र नही होता । भावसग्रहमें चतुर्थ गुणस्थानका स्वरूप बतलाते हुए उसमें तीन भाव बतलाये है। और आगे उक्त गाथाके प्रथम चरणको 'एदे तिण्णि वि भावा' रूपमे परिवर्तित करके दिया है। ध्यान देनेसे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह गाथा मूलमें जीवकाण्डकी होनी चाहिये । अस्तु । ___इसमे सन्देह नही कि भावसग्रह एक संग्रहात्मक ग्रन्थ है और ग्रन्थकारने पूर्वाचार्योके वचनोको ज्योका त्यो या परिवर्तित करके उसमें सगृहीत किया है । यह बात सर्वांशमें नहीं लेना चाहिए, आशिक रूपमें ही लेना चाहिये क्योकि भावसग्रहमें उसके कर्ताके विचार ही अधिक है। केवल जैनतत्त्व ज्ञानसे सवधित विवेचनमें ही पूर्वाचार्यो के वचनोको यत्र तत्र लिया गया है। इसके समर्थनमें एक तो पचसग्रह को ही उपस्थित किया जा सकता है। उसके सिवाय कुन्दकुन्दके ग्रन्थोको भी रखा जा सकता है। भाव सग्रहमे दो गाथाएँ इस प्रकार है जीवो अणाइ णिच्चो उवओगसजुदो देहमित्तो य । कत्ता भोत्ता चेत्तो ण हु मुत्तो सहाव उड्ढगई ॥२८६॥
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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