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४०४ • जैनसाहित्यका इतिहास
सूत्रके अन्तमें आगत शरीरबन्धन नामकर्मके पांच भेदोके १५ सयोगी भेद गाथा २७में बतलाये है । गाथा २८में शरीरके आठ अग वतलाये है । मूडविद्रीकी प्राचीन प्रतिमें गा० २७ और २८के बीचमे नीचे लिखे गद्य सूत्र है
'शरीरसघादणाम पचविह ओरालिय-वेगुन्विय-आहार-तेज-कम्मइयगरीरसघाद णाम चेदि । शरीरसंठाणणामकम्मं छविहं समचउरसठाणणामं णग्गोदपरिमडल-सादिय-कुज्ज-बामण हुडशरीरसठाणणामं चेदि। मरीरअंगोवगणाम तिविह ओरालिय-वेगुन्विय-आहार-सरीरअगोवग णाम चेदि ।
२८वी गाथाके बाद नीचे लिखा गद्य सूत्र है
'सहडणणाम छविह वज्जरिसहणारायसहडणणाम वज्जणाराय-णारायअद्धणाराय-खीलिय-असपत्तसेवद्विशरीरसहडणणाम चेइ।'
२८वी गाथाके अनन्तर चार गाथाओमें छ सहननोका कथन है । जिनमेंसे प्रथम तीन गाथाओमें यह बतलाया है कि किस सहनन वाला जीव मरकर किस स्वर्ग तक अथवा किस नरक तक जन्म लेता है। और चौथी गाथामे वतलाया है कि कर्मभूमिकी स्त्रियों के अन्तके तीन सहननोका ही उदय होता है ।
उक्त सूत्रके साथ इन गाथाओकी सगति बैठ जाती है। गाथा ३२के वाद नीचे लिखे गद्यसूत्र मूडविद्री की प्रति में है
'वण्णनाम पचविह किण्ण-नील-रुहिर-पीद-सुक्किलवण्णणाम चेदि । गधणामदुविहं सुगध-दुगध णाम चेदि । रसणाम पचविहं तिट्ठ-कडु-कसायविल-महुर-रसणाम चेइ। फासणाम अट्टविह कवकड-मउगगुरुलहुग-रुक्ख-सणिद्ध-सीदुसुण-फासणाम चेदि । आणुपुन्वी णाम चउन्विहं णिरय-तिरक्खगाय-पाओग्गाणुपुन्वीणामं मणुस-देवगयि-पाओग्गाणुपुन्वी-णाम चेइ। अगुरुलघुग-उवधाद-परघाद-उस्सासआदव-उज्जोद-णाम चेदि । विहायगदिणाम कम्म दुविह पसत्यविहायगदिणाम अप्पसत्थ-विहायगदिणाम चेदि। तस-वादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-सुभ-सुभग-सुस्सरआदेज्ज-जसकित्ति-णिमिण-तित्ययरणाम चेदि । थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीरअथिर-असुह-दुभग-दुस्सर-अणादेज्ज-अजसकिति णाम चेदि ।
इसके पश्चात् गाथा ३३ है जिसमें उष्ण नामकर्म और आतप नामकर्ममें अन्तर स्पष्ट किया है । गाथा ३३ के साथ नामकर्मकी प्रकृतियोकी गणना समाप्त हो जाती है । ३३ गाथाके पश्चात् नीचे लिखे सूत्र है। जिनमें गोत्रकर्म और अन्तराय कर्मकी प्रकृतियाँ बतलाई है___ 'गोदकम्म दुविह उच्चणीचगोद चेइ । अतराय पंचविह दाण-लाभ-भोगोपभोग-चीरिय-अंतराय चेइ।