________________
३७८ : जेनगाहित्यका इतिहास ___ अनि अद भागमं नार गजलन मागोगंगे एकका तथा नी योगोमंगे एकका उस होता है। प्रोगसी उपस व्युनिपत्ति हो जाने पर तीन कपायोमगे एक का उदय होता है, गानो गन्जित्ति हो जाने पर दो कपायोमगे का उदय होता है
और गागागी उग गन्जिनि हो जाने पर रिल लोग गापायका उदय होता है। गौगोगगंगे | गोगा उपग ग गाता है। अतः ४४९% ३६, १४- २७, २४९ - १८और १४९ प्रकार अद भाग ३६ + २७+१८+ ९ - १० भग होते है। गुल मिलाार २१६ +९० = ३०६ भग दोनो भागों होते।
गिन्तु न० पनगमहंगे नौवं गण स्थानो अवेदमागर्ग चार कपाय और नौ गोगोगे एकएको उदयशी अपेक्षा ४४९ = ३६ भग बतलाये है। गया जपन्यो प्रत्यगी ने यो हायवेदानिवृत्तिो।
नयालेषु नतुले योगाना नवी पर ॥६॥ १x१॥ भगा । ४९ अन्योन्याम्गम्नी ।
तमा सवेद भागमे नार गाय, तीन वेद और नो योगोमगे एक एकका उदय होने ४ x ३ x ९ = १०८ भग ही लिये है । गया
कपारवेद योगानामगीनग्रहणे सति ।
अनिवृत्त मवेदम्य प्रगृष्टा प्रत्ययास्यय ॥६॥ भगा ४।३।९ अन्योन्याम्गम्ता' १०८ ।
इन गरह अनिवृत्तिारण गुणन्थानके मवेद भाग और अवेद भागमें १४४ भग योगको अपेक्षा मोहनीगफे उश्य स्थानोो बतलाये है । आगे प्रा० पचसग्रहमें भी उतने ही भंग लिा है और गोम्मटमार कर्मकाण्डमें भी इतने ही लिए है। शायद इसीगे मं० पं०स० के गाने उक्त स्थानमें १४४ भेदोको ही रसकर जो सर्वसम्मत थे, गेपका उरलेरा नहीं किया । उस विषयमे मतभेद भी है।
पांचवें गप्ततिका कथन प्रा० पं०स० के ही समान है। मध्यमें कही-कही किसी कथनको उढाने छोड भी दिया है। जैने प्रा० पं०सं० में गतिमार्गणामे नामकर्मके उदयस्थानोको कहनेके बाद गा० १९१-२०७ में इन्द्रिय आदि शेप मार्गणाओमे भी नामकमके उदयस्थानोका कथन है। किन्तु डड्ढाने उसे छोड दिया है। अमितगतिने भी डड्ढाका ही अनुसरण किया है। प्रा० पचसंग्रहके पांचवें अव्यायमें मनुष्यगतिमें नामकर्मके २६०९ भग बतलाये है। किन्तु स० प०स०में २६६८ वतलाये है। उक्त २६०९ भंगोमे सयोग केवलिके ५९ भग और जोडे है । ये भंग प्रा० पंचसग्रहमें नही है । अमितगतिके पचसंग्रहमे भी ऐसा ही है।