________________
३३८ : जैनगाहित्य का इतिहाग
पन्नताकी १३ गी गापाम भी गुणगानी गोगापा गगन लिया है जो गतान्तर से गम्मा तामह गाना नगगा मंगली और उगमें जो गर प्रदगिया भी दिगम्बर गाविस हा मिता।
सपना व १० गो गा० १४१५ माती उनमें गणगानीमें बन्ध गै कारणोना निमिा गमा नागारण:-गिरगान, गपिरति फमाग गोग गोर उ भे क्रम ५ + १२ + २५ + १५ = ५७ । गुणम्यान,
और मार्गणाओगे इन तान समारणोफा नमसमें बहुत गिस्तार से तगा गई प्रकार गगन रियाय पर्यन्त तगामिणार मी गाथा गरया २०३ हो जाती है। गाया सम्या २०४ मे २०१० पी १६ वी आदि गाथा माती है इनमे शानाारणादि पाठी गो भानन विशेष कारण बतलाये है। यह गारण प्राग ये ही है जो तत्वार्थ छठे मध्याग में बतलाये है। बन्धमतगणी दग गायामी में नका कयन है और वे दमो गायाएं पचगगह में यथाक्रम दी गयी है। उनगी पश्नात् दो गागा और है उनमें बतलाया है यह कथन अनुभाग बन्धकी अपेक्षा गे है ।
गफे पश्चात् बन्मशती २७ जी गागा नाती है। यहागे बन्धाता गुणस्थानोमे आठो गुलकर्मोनियम, उग, उदीरणा और गता का कथन है। यह कशन पचसमहके तीसरे अगियार प्रारम्भ में भी आता है और यहा भी है इस लिये पुनरुक्त जमा हो जाता है । बन्धशतक की २८वी गावा इन प्रकार है
सतछविहरू ( -विह ) बनगावि वेगन्ति अट्ठग णियमा । एगविह बन्धगा पुण चत्तारि व सत्त वेयन्ति ॥२८॥ पचसगह में इसके स्थान पर जो गाथा है वह इस प्रकार हैअठविह सत्त उव्वन्धगा वि वेयन्ति अठ्ठय णियमा ।
उवसत खीणमोहा मोहूणाणि य जिणा अघाईणि ॥२१६॥ दोनो के अभिप्रायमें कोई अन्तर नहीं है।
इसी तरह वधशतककी २९ वी गाथाका अन्तिम चरण है-'तहेव सत्तेवुदीरित्ति' । और पचसग्रहमें इसके स्थानमें "मिस्सूणा सात आऊण पाठ है।
व० श० की ३० से ३६ तककी गाथाएँ पञ्चसग्रहमें यथाक्रम है । ३७ वी गाथामें पाठान्तर' है। व० श० गा० ३८ में आठो कर्मों के नाम और भेद 'भवसेसट्ठ विहकरा वेयति उदीरयावि-अठण्ड । सत्तविहगावि वेश् ति अट्ठगमुर्रणे भज्जा ॥३७ । व. श० 'वधतिय वेयति य उदीरयंति यअ भट्ट अवसेसा । सत्तविहवंधगा पुणा अट्टण्टमुदीगे मज्जा' ॥२०६-५० स०।