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________________ २९८ : जैनसाहित्यका इतिहास प्रकृति स्थानोमें कोई प्रकृति स्थान सक्रान्त होता है उन्हें पतद्ग्रह कहते है कसायपाहुड गाथा न २९ - ३०-३१ में कर्म- प्रकृति गा० न० १२-१३-१४ में कोई अन्तर नही है, क्वचित् शब्दोका अन्तर है । चोहसग दसग सत्तग अद्वारसगे च णियम वावीसा । णियमा मणुस गईए विरदे मिस्से अविरदे य || ३२|| क० पा० चोहसग दसग सत्ता अट्ठारसगे य होइ वावीसा | णियमा मणुय गईए णियमा दिट्ठीकए दुविहे ||१५|| क० प्र० दोनो गाथाओके चतुर्थ चरण में अन्तर होनेपर भी दोनोके अभिप्रायमें अन्तर नही है । ऊपर की गाथामें बतलाया है कि चौदह, दस, सात और अट्ठारह में वाईस प्रकृतियों का संक्रमण होता है । वह सक्रमण नियमसे मनुष्य गतिमें, और संयतासयत और असयत - सम्यग्दृष्टि गुणस्थानोंमें होता है । कर्म प्रकृतिकी गाथामें गुणस्थानोंका निर्देश न करके यह निर्देश किया है कि यह बाईस प्रकृतिक स्थान नियमसे दर्शनमोहनीय की सम्यक्त्व और सम्यक मिथ्यात्व रूप प्रकृतियोंका ही अस्तित्व होने पर होता है। किंतु कषायपाहुड निर्दिष्ट गुणस्थानोका कथन सभीको मान्य है । उसमें कोई मतभेद नही है । तेरसय णवय सत्तय सत्तारस पणय एगवीसाए । एगाधिगाए वोसाए सकमो छप्पि सम्मले ||३३|| क० पा० तेरसग णवग सत्ता सत्तरसग पणग एक्कवीसासु । एक्कावीसा संकमइ सुद्ध सासाण मीसेसु ॥ १६ ॥ क० प्र० यहाँ भी दोनोंके चतुर्थ चरणमें अन्तर है तथा अभिप्रायमें भी थोडा अंतर है । दोनों में कहा है कि तेरह, नो, सात, सतरह, पांच और इक्कीस इन छै स्थानों में इक्कीस का संक्रमण होता है । कसायपाहुडमें कहा है कि यह सक्रमण सम्यक्त्व गुण विशिष्ट गुणस्थानोमें ही होता है । कर्मप्रकृति में कहा है कि अविरत सम्यग्दृष्टि आदि तथा ससादन और मिश्र गुणस्थानमें होता है । उक्त गाथाको व्याख्या करते हुए जयघवलामें सम्यक्त्व गुण विशिष्ट गुणस्थानो में सासादनका तो ग्रहण किया है किन्तु मिश्र गुणस्थान का ग्रहण नही किया । इन गाथाभोपर दोनो ग्रन्थोमें चूर्णियाँ नही है अतः कुछ विशेष कह सकना शक्य नही है । एत्तो अवसेसा सजमम्हि उक्सावगे च खवर्ग च । वीसाय सकमदुर्ग छक्के पयाए च वोद्धव्वा ||३४|| क० पा० एत्तो अविसेसा सकर्मति उवसामगे व खवगे वा । उवसामगेसु वीसा य सत्तगे छक्क पणगे वा ॥ १७॥ क० प्र०
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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