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जयधवला-टीका • २७९
बप्पदेवकृत व्याख्या-प्रज्ञप्ति
इन्द्रनन्दिके श्रुतावतारके जिन श्लोकोमें वप्पदेवकृत व्याख्या-प्रज्ञप्तिका उल्लेख है उनका अर्थ समझनेमें कुछ भ्रम हुआ है । श्लोक इस प्रकार है
श्रुत्वा तयोश्च पार्वे तमशेष वप्पदेवगुरू ॥१७३ ॥ अपनीय महावन्ध षट्खण्डाच्छेष पञ्चखण्डे तु । व्याख्या प्रज्ञप्तिं च षष्ठ खण्ड च तत साक्षिप्य ॥१४७।। षण्णा खण्डानामिति निष्पन्नाना तथा कषायाख्यप्राभूतकस्य च षष्ठि सहस्रग्रन्थ प्रमाण युताम् ॥१७५।। व्यलिखत् प्राकृत भाषा रूपा सम्यक् पुरातनव्याख्याम् ।
अण्टसहस्रग्रन्था व्याख्या पञ्चाधिका महावन्धे ॥१७६।। पहली पक्तिका अर्थ स्पष्ट है-'शुभनन्दि और रविनन्दिके समीप में समस्त सिद्धान्तको सुन कर वप्पदेवगुरूने' ।
दूसरी पक्तिका अर्थ-छखण्डमेंसे महावन्धको पृथक् करके, शेष पांचखण्डोंमें।
तीसरी पक्तिका अर्थ-व्याख्या प्रज्ञति नामक छठे खण्डोको मिलाकर
चौथी तथा पांचवी पक्ति- इस प्रकार निष्पन्न हुए छहो खण्डोकी तथा कषाय-प्राभृतकी साठ हजार ग्रन्थ प्रमाणवाली।।
छठी-सातवी पक्ति-प्राकृत भापारूप प्राचीन व्याख्याको लिखा और महाबन्ध पर आठ हजार पाँच ग्रन्थ प्रमाण व्याख्या लिखी ।
अत वप्पदेव टीकाका नाम व्याख्या प्रज्ञप्ति नही था। किन्तु भूतवलीपुष्पदन्त प्रणीत पांच खण्डोमें वप्पदेवने जो छठा खण्ड मिलाया उसका नाम व्याख्या-प्रज्ञप्ति था। इसी व्याख्या-प्रज्ञप्तिको प्राप्त करके वीरसेन स्वामीने सत्कर्म नामक छठा खण्ड रचा था। श्रु तावतारमें लिखा है
"व्याख्या प्रज्ञप्तिमवाप्य पूर्वषट् खण्डतस्तत स्तस्मिन् । उपरितमबन्धनाद्यधिकार रष्टादश विकल्पै ॥१८०॥ सत्कर्म नाम ध्येय षष्ठ खण्ड विधाय सक्षिप्य । इति षण्णा खण्डाना ग्रन्थ सहस्र द्विसप्तत्या ॥१८१।।
प्राकृत सस्कृत भाषामिश्रा टीका विलिख्य धवलाख्याम्" व्याख्या-प्रज्ञप्ति को प्राप्त करके वीरसेन स्वामीने आगेके निवन्धन आदि मदनारह अधिकारोंके भेदसे सत्कर्म नामक छठे खण्डकी रचना की और उसे पहले के षटखण्डमें मिलाया इस तरह छै खण्डोंकी बहात्तर हजार ग्रन्थ प्रमाण प्राकृत सस्कृत मिश्रित धवला नामक टीका लिखी।'