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२७८ . जैनसाहित्यका इतिहास गया था, अन्य महान जैनाचार्योमें तुम्बुलूराचार्यका भी स्मरण किया है अत. यह निश्चित है कि वह ईसाकी दसवी शतीसे पूर्वमें हुए है। इन्द्रनन्दिने उन्हें शामकुण्डाचार्य और समन्तभद्रके मध्य में रखा है। समन्तभद्रकृत सस्कृत टीका
इन्द्रनन्दिके कथनानुसार ताकिका आचार्य समन्तभद्रने भी पट्क्सडागमके प्रथम पांच खण्डोपर ४८ हजार श्लोक प्रमाण टीका रची थी यह टीका अति सुन्दर मृदु संस्कृत भापामें थी। ताकिकार्क विशेषणसे यह स्पष्ट है कि इन्द्रनन्दिका अभिप्राय आप्तमीमासा के स्वयभूस्तीन मादिके रचयिता प्रखर ताकिक आचार्य समन्तभद्र से ही है लघु-समन्तभद्ने अष्ट सहस्त्रीके टिपप्णमें समन्त भद्रको ताकिका विशेपणसे ही अभिहित किया है । यथा
'तदेव महा महभागस्ताकिकार्करूपज्ञाता श्रीमता वादीभसिंहेनो पलालिता माप्तमीमासा ।' बोरसेन स्वामीने अपनी धवला टीकामें समन्त भद्रके नामोल्लेख पूर्वक उनके आप्तमीमासा' तथा वहत्स्वयभूस्तोत्रसे२ उद्धरण दिये है। किन्तु ऐसा एक भी उल्लेख नहीं मिलता, जिससे उक्त टीकाका सकेत मिलता हो।
समन्तभद्र कृत गन्धहस्ति-महाभाष्य३के भी उल्लेख मिलते है जिनमें उसे तत्वार्थसूत्र अथवा तत्वार्थका व्याख्यान कहा है। उसका परिमाण कही ८४ हजार तो कहीं छियानवे हजार बतलाया है। गन्धहस्ति-महाभाष्य विपयक उल्लेख प्रायः विक्रमको ग्यारहवी शताब्दीके और उसके वादके है। अतः जैसे तुम्बुलूराचार्यकी टीकाको भ्रमसे तत्वार्थसूत्रकी टीका समझ लिया गया, कही इसी तरह समन्तभद्रकी पट्सडागम सूत्रोपर रचित टीकाको भी तत्वार्थ सूत्रकी टीका तो नहीं समझ लिया गया । ८४ और ९६ हजार सख्या किसी न किसी रूपमें ४८ हजारसे सम्बद्ध है एक उसके अकोका व्यतिक्रम रूप है तो दूसरी उसका द्विगुणित रूप है । किन्तु यह सव तो अनुमान मात्र है । यथार्थमें तो उक्त उल्लेखोके सिवाय ऐसे पुष्ट प्रमाणोका अभाव है जिनके आधार पर उक्त टीका तथा गन्धहास्ति-महाभाष्यका अस्तित्व प्रमाणित किया जा सकता हो ।
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१. 'तथा समन्तभद्रस्वा मिनाप्युक्तम्-'स्यावाद प्रविभक्तार्थ विशेष व्यन्जको नय.।' २. 'तहा समन्तभद्द समाणि वि उत्त-विधिविपक्त प्रतिवोधरूप । पटख, पु० ७,
पृ ९९ । तत्त्वार्थ सूत्रव्याख्यान गन्धहस्ति प्रवर्तक । स्वामी समन्तभद्रोऽभूदेवागम निदेशक ।' -वि० कौरव 'तत्त्वार्थ व्याख्यान पण्णवति सहस्र गन्धहस्तिमहाभाष्य विधायक देवागम कवीश्वर स्याद्वादविद्यापति समन्तभद्र जै. सा. ड वि प्र७ पृ २७७ ।