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जयधवला-टीका . २७७ पदको अलग न पढकर आगेके व्याख्या' पदके साथ मिलाकर 'चूडामणि व्याख्या' पढना चाहिए । तब उस पक्तिका अर्थ होगा-तुम्बलूराचार्यने कनडीमें चूडामणिकी एक बड़ी टीका बनायो।'
तव प्रश्न होता है कि चूडामणि गन्थ किसका था जिसकी व्याख्या तुम्बुलूराचार्यने बनायो ? श्रवणवेलगोलाके पार्श्वनाथ-बसदिके स्तम्भपर अकित शिलालेखमें चूडामणि नामक काव्यके रचयिता श्री वर्द्धदेवका स्मरण किया है और उनकी प्रशंसामें दण्डोकविके द्वारा कहा गया एक श्लोक भो उद्धृत किया है । यथा
"चूडामणि कवीना चूडामणि नाम सेव्य काव्य कवि ।
श्रीवर्द्धदेव एव हि कृतपुण्य कीर्ति माहर्तुम् ॥ य एव मुपश्लोकितो दण्डिना
जह्नो कन्या जटानेण वभार परमेश्वर ।
श्रीवर्द्धदेव संधत्से जिहवाग्रेण सरस्वती ।। शिलालेखके इस कथनके साथ कर्नाटक शब्दानुशासनके उल्लेखको मिला कर श्री पैने यह निष्कर्ष निकाला है कि श्रीवर्द्धदेवने तत्वार्थ-महाशास्त्रपर ९६००० श्लोक प्रमाण चूडामणि नामक टीका कन्नड भाषामें रची । और तुम्बुलूराचार्यने चूडामणिके ऊपर ८४ हजार प्रमाण कन्नड टीका और ७००० प्रमाण पजिका लिखी। ___इन्द्रनन्दिके श्रुतावतारके तुम्वुलूराचार्य विषयक श्लोक कर्णाटक-कविचरिते में उद्धृत है और श्री पै ने अपने लेखमें उन्हें वहीसे उद्धृत किया है । ___ अत प्रतीत होता है कि श्रीयुत पै ने इन्द्रनन्दिका श्रुतावतार नही देखा। अन्यथा वे 'चूणामणि-व्याख्या को समस्त, पद न बनाकर उसका 'चूडामणिकी व्याख्या' ऐसा अर्थ न करते । क्योकि श्रुतावतारमें सिद्धान्त ग्रन्थोके व्याख्यानोका कथन किया गया है, जिसमें से एक चूडामणि नामक व्याख्या भी है फिर शिलालेखमें श्री वद्ध देवको चूडामणि नामक काव्यका कर्ता कहा है। चूडामणि नामक कन्नड टोकाका कर्ता नही कहा। तभी तो वद्ध देवका शिलालेखमें 'कवीना' चूडामणि लिखा है और प्रसिद्ध कवि दण्डीके द्वारा उनकी प्रशसा किये जानेसे यह और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है कि वद्धदेवका चूडामणि काव्य सस्कृतका गौरव रूप था। अत श्री पै महाशयका उक्त कथन भ्रामक है। __ तुम्बुलुर ग्रामके वासी होनेके कारण चूडामणि व्याख्याकार तुम्बुलूराचार्य कहलाते थे उनका असली नाम क्या था यह अज्ञात है। गगराजके मत्री तथा सेनापति चामुण्डरायने अपने चामुण्डपुराणमें, जो ९७८ ई में कन्नड गद्यमें रचा १, जै ९शिस०, प्र० मा०, पृ० १०३ ।