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२७६ : जैनसाहित्यका इतिहास
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षट्खण्डागम पुस्तक की अपनी प्रस्तावनाएँ प्रोफेसर हीरालालजीने भी लिखा-' इन ग्रन्थोकी भी तत्वार्थ महाशास्त्र नामसे प्रसिद्धि रही है, क्योकि, जैसा हम ऊपर कह आये है, तुम्बुलूराचार्यकृत इन्ही ग्रन्थोकी चूडामण टीकाको अकलकदेवने तत्वार्थ- महाशास्त्र व्याख्यान कहा है' ( पृ ५१ ) ।
जैसा कि हम ऊपर लिख आये है, 'तत्वार्थसूत्र' नाम लाक्षणिक होते हुए भी उस तत्वार्थसूत्र के लिए ही रूढ हुआ है जिसको उमास्वामीको कृति माना जाता है । उसे ही तत्वार्थशास्त्र या तत्वार्थ- महाशात्र कहा गया है । एक भी उल्लेख ऐसा नही मिलता जिसमें उक्त दोनो सिद्धान्त ग्रन्थोको तत्वार्थसूत्र या तत्वार्थ - महाशात्र कहा गया हो। अतएव चूँकि इन्द्रनन्दिने उक्त सिद्धान्तग्रथो पर तुम्वुलूराचार्यकी चूडामणिनामक टीकाका निर्देश किया है जो कनडीमें थी । ओर शब्दानुशासनमें तत्वार्थ महाशास्त्रकी चूडामणि नामक कनडी टीकाका निर्देश किया गया है, अतः सिद्धान्त -ग्रन्थोको तत्वार्थ- महाशास्त्र कहते थे, यह निष्कर्ष निकालना हमें उचित प्रतीत नही होता ।
कर्नाटक शब्दानुशासनको रचना १६०४ ई० में हुई है । और उक्त दोनों सिद्धान्त ग्रन्थोके ऊपर घवला - जयघवलाकी रचना होनेके पश्चात् श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्तीके द्वारा उनके आधार पर श्री गोम्मटसारको रचना होनेपर हम सिद्धान्त-ग्रन्थोकी चर्चाका अवरोध पाते हैं जबकि तत्वार्थ सूत्रकी ख्याति उत्तरोत्तर बढती गयी है। कर्नाटक शब्दानुशासनकी तरह न्यायदीपिका में भी तत्वार्थसूत्रको महाशास्त्र कहा है । न्यायदीपिका ईसाकी १५ बी शतीके लगभग रची गयी थी अत उस कालमें तत्वार्थ - महाशास्त्र के रूपमें तत्वार्थ सूत्रको हो ख्याति थी, सिद्धान्त ग्रन्थोका तो नाम भी उसकाल में सुनायी नही देता । अत कर्नाटक शब्दानुशासनके रचयिताने चूडामणिको तत्वार्थ महाशास्त्रका व्याख्यान समझा हो, ऐसा भ्रम होना सम्भव है । अस्तु कर्नाटक शब्दानुशासन के उक्त उल्लेखसे यह प्रमाणित होता है, कि कनडी भाषामें एक व्याख्या - ग्रन्थ था और उस व्याख्या-ग्रन्थका इन्द्रनन्दिके द्वारा निर्दिष्ट व्याख्या -ग्रन्थ होना सम्भव है ।
किन्तु श्रीयुत् गोविन्द' 'पै' का मन है कि भट्टाकलक के द्वारा कर्नाटक शब्दानुशासनमें स्मृत चूडामणि तुम्बुलूराचार्य कृत चूडामणि नही हो सकता, क्योकि पहले का परिणाम ९६ हजार बतलाया गया है और दूसरेका ८४ हजार । अत पै महाशयका कहना है कि इन्द्रनन्दिके श्रुतावतारकी 'कर्णाट भाषया कृत महती चूडामणि व्याख्याम्' पक्ति अशुद्ध प्रतीत होती हैं । इसमें आये हुए 'चूडामणि
१ 'श्रीमद्ध देव एण्ड तुम्वुलूराचार्य' - जैन एण्टि०, जि० ४ न० ४ ।