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चूर्णिसूत्र साहित्य - १७५ यतिवृषभने गुणधराचार्यके द्वारा कहे गये अधिकारोका निषेध नही किया किन्तु उनके ही कथनका अभिप्रायान्तर व्यक्त किया है। गुणधराचार्यने तो पन्द्रह अधिकारोकी दिशा मात्र दिखलाई है । उससे यह आगय नही लेना चाहिये कि जिन अधिकारोका गुणधराचार्यने निर्देश किया है वे ही अधिकार होने चाहिये । इसी वातको दिखलानेके लिये यतिवृषभने अन्य प्रकारसे पन्द्रह अधिकार कहे है । सभवत अपने उक्त परिहारको उपपन्न करनेके लिये जयधवलाकारने एक तीसरे प्रकारसे पन्द्रह अधिकारोका निर्देश किया है और लिखा है कि इसी प्रकार चौथे पाचवें आदि प्रकारोसे पन्द्रह अधिकारोका कथन कर लेना चाहिये। गुणधराचार्यके द्वारा निर्दिष्ट पन्द्रह अधिकारोका कथन करने वाली गाथाए इस प्रकार है
'पेज्जदोस विहत्ती ट्ठिदि अणु भागे च बधगे चेय । वेदग उवजोगेवि य चउहाण वियजणे चेय ॥१३॥ सम्मन देस विरयी सजम उवसामणा च खवणा च ।
दसण चरित्त मोहे अद्धापरिमाणणिद्देसो ॥१४॥ १. पेज्जदोसविहत्ती (प्रेयोद्वेष विभक्ति,), २ ठिदि (स्थिति विभक्ति), ३ अणु भाज (अनुभाग विभक्ति), ४-५ वधग (अकर्मवन्धकी अपेक्षा बन्धक और कर्मवधकी अपेक्षा वन्धक अर्थात् सक्रामक), ६ वेदग (वेदक), ७ उवजोग (उपयोग) ८ चउहाण (चतु स्थान), ९ वियजण (व्यञ्जन), सम्मत्त (१० दर्शनमोहकी उपशामना और ११ दर्शनमोहकी क्षपणा । १२ देस विरयी देश विरति), १३ सजम (सकल सयम), १४ उवसामणा च (चारित्र मोहकी उपशामना), १५ खवणा च (चारित्रमोहकी क्षपणा) ये पन्द्रह अधिकार गुणधराचार्यने कहे है। उक्त गाथाओ के ही आधार पर रचित चूर्णिसूत्रोमें यतिवृषभने नीचे लिखे अनुसार पन्द्रह अधिकार गिनाये है__पेज्ज दोसे १ (प्रेयोद्वेप, विहत्ति ठिदि अणु भागे च २ (प्रकृतिविभक्ति, स्थितिविभक्ति, अनुभागविभक्ति, प्रदेशविभक्ति, झीणाझीणा और स्थित्यन्तिकको लिये हुए दूसरा अधिकार), बधगेति वधो च ३ सकमो च ४ (वन्धकपदसे तीसरा बन्धक और चौथा सक्रम) अधिकार वेदएत्ति उदओ च ५. उदीरणा च ६ (वेदकपदसे पाचवा उदयाधिकार और छठा उदीरणाधिकार), उवजोगे च ७. (उपयोग), चउट्ठाणेच ८ (चतु स्थान), वजणे च ९ (व्यञ्जन), सम्मत्तेत्ति दसणमोहणीयस्स उवसामणा च १०. दसणमोहणीयक्खवणा च ११ ('सम्यक्त्व' पदसे दर्शन मोहनीयकी उपशामना नामक दसवा दर्शन मोहनीयकी क्षपणा नामक ग्यारहवां अधिकार), देसविरदी च १२ (देशविरति नामक बारहवा अधिकार), संजमे उवसाामणा च खवणा च चारित्त मोहणीयस्स उवसामणा च १३, खवणा च १४ (चारित्र मोहनीयकी उपशामना नामक तेरहवा और चारित्र मोहनीयकी