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१३० जनसाहित्यका इनिहाग
'गज्जय-अगगर-गन-गपादय-गठियत्ति-जोगटाग।
पाहुगाहर-वल्ल गुन गमागा य बोला ॥१॥' अर्थात् गर्गाय, पर्यायगगाग, अपर, पारगमाग, , माग, गात, मघातगगाग, पतिपत्ति, प्रतिपत्तिसगाग, अनुगोगार, जनगांग, रगमाग, प्रामृत, प्राभृतरागास, प्रागृतप्रात, पानप्राभूतगगाग, पन्नु, गमाग, पूर्व और पूर्वगमाग ये गुतनागो बीग गेट है।
इन्हीको लेकर गुरगाग्ने गत १८ में पुतज्ञानापरणीयामी बीग भेद गिनाये है। श्रुतबानगे. इन भोगिनो ये भरलाटीका देगना नाहिये ।
श्वेताम्बर्गग नन्दिरागमे शागी गुन्दर गई। शिन्तु श्रनशानो इन बीम भेदोका कोई गोत तक आगगिक पगपरामे नही मिलना। हां, गन्गमे एक गाथाके दाग श्रुतज्ञानगे ये बीरा भेद अवरग गिनाये गये है।
प्रकार गतवरिने एगा गूगने गग शुतमानो तालीम पर्यायगन्द गिनाये है । जो इन गकार है-प्रावनान, पवननीय, प्रबननार्ग, गतियोमे गार्गणता, भात्मा, परमगलगि, अनुत्तर, प्रवनग, प्रवननी, प्रवननादा, प्रवचनसन्निकर्प, नयविधि, नगान्तरविधि, भगविधि, मंगपिपिपि , पन्छाविधि, पृच्छाविधिविशेष, तत्व, भूत, भन्य, भविष्यत्, अस्तिय, मविहत, वेद, न्याय, शुद्ध, सम्यग्दृष्टि, हेतुबार, नानाद, प्रवरवाद, गार्गवाद, श्रुतवाद, परवाद, लौकिकवाद, लोकोत्तरीयवाद, अग्य, मार्ग, यशानुगार्ग, पूर्व, यमानुपूर्व और पतिपूर्व ये श्रुतज्ञानो पर्यागनाम है ॥५०॥ धवलामे न व्याग्यान दिया है।
अवधिज्ञानावरणीयकारी अगण्यात प्रकृतियां बतलाते हुए अवधिनानके दो भेद किये है-वप्रत्यय और गुणप्रत्यय । भवप्रत्ययमवधिज्ञान देवनारकियोके होता है और गुणप्रत्यगमनधिज्ञान तिर्यञ्चो और मनुष्योके होता है।
अवधिज्ञानके अनेा भेद है - देगावधि, परगावधि, राविधि, हीयमान, वर्धमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, मप्रतिपाती, मप्रतिपाती, एकक्षेत्र और अनेक ॥५६॥
जिसके अवधिज्ञान होता है उसके शरीरमे नाभिसे जार श्रीवत्म, गालग, शख, स्वस्तिक, नन्दावर्त आदि आकार बन जाते है। इन्ही चिन्होसे अवधिज्ञान उत्पन्न होता है । उन्हीके कारण उसे एक क्षेत्र या अनेक क्षेत्र कहते है। ___ आगे गाथासूत्रोके द्वारा सूत्रकारने अवधिज्ञानके क्षेत्रसे सम्बद्ध कालना और कालसे सम्बद्ध क्षेत्रका, तथा देवोके अवधिज्ञानके विपयका कथन किया है । सूत्रगाथा १५ के द्वारा परमावधिज्ञानके द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावका काथन किया
१ पट्ख०, धवला, पु० १३, पृ० ३०१.३२७ ।