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जैनसाहित्य और इतिहार
८४ इय पउमचरियसेसे सयंभुएवस्स कहवि उब्वरिए ।
तिहुयणसयंभुरइए सपरियण-हलीस-भवकहणं ॥ इय रामएव-चरिए वंदइआसियसयंभुसुय-रइए ।
बुहयण-मण-सुह-जणणो चउरासीमो इमो सग्गो । ८५ वंइआसिय-महकइ सयंभु-लहु-अंगजाय विणिबद्धो ।
सिरिपोमचरियसेसो पंचासीमो इमो सग्गो ।। ९० इय पोमचरियसेसे सयंभुएवस्स कहवि उव्वरिए ।
तिहुयणसयंभुरइए राहवणिव्वाणपव्वामिणं ।। वंदइआसिय-तिहुयण-सयंभुपरिविरइयम्मि महाकव्वे । पोमचरियस्स सेसे संपुण्णो णवइमो सग्गो ।
रिडणेमिचरिउका प्रारंभिक अंश सिरिपरमागम-णालु सयल-कला-कोमल-दलु । करहु विहूसणु कण्ण जायव-कुरुव-कुलुप्पलु ॥
चिंतवइ सयंभु काइ करम्मि हरिवंस-महण्णउ के तरम्मि । गुरु-वयण-तरंडउ लद्दु णवि जम्महो वि ण जोइउ को वि कवि ॥ णउ णाइउ बाहत्तरि कलाउ एक्कु वि ण गंथु परिमोक्कलाउ । तहिं अवसरि सरसइ धीरवइ करि कव्वु दिण्ण मइ विमलमइ । इंदेण समप्पि उ वायरणु रसु भरहें वासें वित्थरणु । पिंगलेण छंद-पय-पत्थारु भम्मह-दंडिणिहिं अलंकारु । बाणेण समप्पिउ घणघणउ तं अक्खर-डंबरु अप्पणउ । सिरिहरिसें णिय णि उणत्तणउ अवरेहिं मि कइहिं कइत्तणउ । छंडणिय-दुवइ-धुवएहिं जडिय चउमुहेण समप्पिय पद्धडिय । जण-णयणाणंद-जणेरियए आसीसए सव्वहु केरियए । पारंभिय पुणु हरिवंस-कहा स-समय-पर-समय-वियार-सहा । पत्ता-पुच्छइ मागहणाहु, भवजरमरण-वियारा
थिउ जिण-सासणु केम, कहि हरिवंस भडारा ॥ २ ॥