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जैनसाहित्य और इतिहास
कइरायस्स विजय-सेसियस्स वित्थारिओ जसो भुवणे । तिहुयण-सयंभुणा पउमचरियसेसेण णिस्सेसो ॥ २ ॥ तिहुयण-सयंभु-धवलस्स को गुणो वणिउ जए तरइ । बालेण वि जेण सयभुकव्वभारो समुव्बूढो ॥ ३ ॥ वायरण-दढ-क्खंधो आगम-अंगोपमाण-वियडपओ। तिहुयण-सयंभु-धवलो जिणतित्थे वहउ कव्वभरं' ॥ ४ ॥ चउमुह-सयंभुएवाण वणियत्थं अचक्खमाणेण । तिहुयण-सयंभु-रइयं पंचमि-चरियं महच्छरियं ॥ ५ ॥ सव्वे वि सुया पंजर सुय व्व पढिअक्खराई सिक्खंति । कइरायस्स सुआ सुय व्व सुइगब्भ-संभूआ ॥ ६ ॥ तिहुयण-सयंभु जइ ण हुंतु गंदणो सिरिसयंभुदेवस्स । कव्वं कुलं कवित्तं तो पच्छा को समुद्धरइ ।। ७ ॥ जइ ण हुउ छंदचूडामणिस्स तिहुयण-सयंभु लहुतणउ। तो पद्धडियाकव्वं सिरिपंचमि को समारेउ ।। ८ ।। सव्वो वि जणो गेण्हइ णिय ताय-विढत्त-व्व-संताणं । तिहुयण-सयंभुणा पुण गहियं णं सुकइत्त-संताणं ॥ ९ ॥ तिहुयण-सयंभुमेकं मोत्तूण सयंभुकव्व-मयरहरो । को तरह गंतुमंतं मज्झे हिस्सेस-सीसाणं ॥ १० ॥ इय चारु पोमचरियं सयंभुएवेण रइय सम्मत्तं । तिहुयण-सयंभुणा तं समाणियं परिसमत्तमिणं ॥ ११ ॥ मारुय-सुय-सिरिकइराय-तणय-कय-पोमचरिय अवसेसं । संपुष्णं संपुणं वंदइओ लहउ संपुणं ॥ १४ ॥ गोइंद-मयण सुयणंत विरइयं (?) वंदइय-पढमतणयस्स । वच्छलदाए तिहुयण-सयंभुणा रइयं महप्पयं ॥ १५ ॥ वंदइय-णाग-सिरिपाल-पहुइ-भव्वयण-समूहस्स । आरोगत्त-समिद्धी संति सुहं होउ सव्वस्स ॥ १६ ॥
१ सांगानेरवाली प्रतिमें १, ३ और ४ को क्रमसे ८८, ९० और ८९ वीं संधिके प्रारम्भमें भी दिया है । २ 'वाणियत्थं ।'