________________
महाकवि स्वयंभु और त्रिभुवन स्वयंभु
(२)
✔
वड्ढमाण-मुह-कुहर-विणिग्गय अक्खर वास- जलोह-मणोहर दीह- समास - पवाहावंकिय
देसीभासा-उभय-तडुजल अत्थबद्दल-कल्लोलाणिट्ठिय एह रामकह- सरि सोहंती पच्छई इंदभूइ - आयरिएं पुणु एवहिं संसाराराएं पुणु रविसेणायारेय- पसाएं पडमिणि-जणणि- गन्भसंभूएं अइतरण पईहरग
घत्ता - णिम्मल - पुण्ण - पवित्त-कह- कित्तणु आढप्पइ | जेण समातिएण थिरकित्ति विढप्पइ || २ ||
रामकहाणए एह कमागय । सुयलंकार-छंद-मच्छोहर । सक्कय-पायय- पुलिणालंकिय । कवि-दुक्कर- घण-सद्द - सिलायल | आसासय-सम-तूह-परिट्ठय |
हर-देवहिं दिट्ठ वती । पुणु धम्मेण गुणालंकरिएं । कित्तिहरेण अणुत्तरवाएं । बुद्धिए अवगाहिय कइराएं ।
मारुयएव रूव- अणुराएं । छिव्वर - णासें पविरल-दंतें ।
वहयण सयंभु परं विष्णवइ वायर कयाविण जाणियउ उ पच्चाहारहो तत्ति किय उ णिसुणिउ सत्तविहत्तियाउ छक्कारय दस लयार ण सुय ण बलाबल धाउ - णिवाय-गणु
उ णिसुणिउ पंच महायकव्वु णउ बुज्झिउ पिंगल पत्थारु ववसाउ तोवि णउ परिहर राम
३८९
( ३ )
मई सरिसउ अणु गत्थि कुकइ । उ वित्ति सुत्त वक्खाणियउ । उ संधि उपरि बुद्धि ठिय । छव्विहउ समास - पउत्तियाउ । वीसोवसग्ग पच्च पहुय । णउ लिंगु उणाइ चउक्कु वयणु । उ भरहु ण लक्खणु छंदु सब्बु । उ भम्मह दंडियलंकारु । वरि रयडावुत्तु कव्वु करमि । अन्तिम अंश
तिहुयण-सयंभु णवरं एक्को कहराय - चक्किणुप्पण्णो । पउमचरियस्स चूडामणि व्व सेस' कयं जेण ॥ १ ॥
१ सांगानेरवाली प्रतिमें ' बुद्धिइ णियइ जणिय कराएं' पाठ ,, पाठ । ३ सांगानेरवाली प्रतिमें ' सेसे' ।
अणुणाहि कु
1 २ उक्त प्रतिमें