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जैन रत्नाकर तीन अज्ञान-(६) मति अज्ञान (७) श्रुत अज्ञान (७) विभंग
अज्ञान । चार दर्शन -(8) चक्षुः दर्शन (१०' अचक्षु दर्शन
(११) अवधि दर्शन (१२) केवल दर्शन । (१०) दशवें बोले कर्म आठ
(१) ज्ञानवरणीय कर्म (२) दर्शनावरणीय कर्म (३) वेदनीय कर्म (४) मोहनीय कर्म (५) आयुष्य
कर्म (६) नाम कर्म (७) गोत्र कर्म (८) अन्तराय कर्म । (११) इग्यारहवें वोले गुण स्थान चौदह
(१) मिथ्या दृष्टि गुण स्थान (२) सास्वादन सम्यग दृष्टि गुण स्थान (३) मिश्र गुणस्थान (४) अविरत सम्यग दृष्टि गुणस्थान : ५) देश विरति गुण स्थान (६) प्रमत्त संयत गुण स्थान (७) अप्रमत्त संयत गुण स्थान (८) निवृत्ति वादर गुण स्थान (8) अनिवृत्ति वादर गुण स्थान (१०) सूक्ष्म सम्पराय गुण स्थान (११) उपशान्त मोह गुण स्थान (१२) क्षीण मोह • गुण स्थान (१३) सयोगी केवली गुण स्थान
(१४) अयोगी केवली गुण स्थान। (१२) बारहवे चोले पांच इन्द्रियों के तेवीस विषयश्रोत्रेन्द्रिय के तीन विषय -(१) जीव शब्द (२) अजीव
शब्द ३) मिश्र शब्द। चक्षुरिन्द्रिय के पांच विपय -(४) कृष्ण वर्ण (५) नील वर्ण